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________________ सातवीं संधि ___ चक्रेश्वरने दीक्षा लेकर तथा सब तपोंका पालनकर तीर्थंकर गोत्रका बंध किया । हे भव्यजनो ! उस कथाभागको सुनो। १ दीक्षाकी प्रशंसा यह ( दीक्षा ) चंद्र, नागेन्द्र, सूर्य और इन्द्र द्वारा पूजित है; काम, क्रोध और लोभसे रहित है; पापरूपी ऊँचे पर्वतके लिए वज्र है; आठों दुष्ट पापकर्मों का नाश करनेवाली है; शील चारित्र्य और सम्यक्त्वसे भूषित है, देवनाथने ( इस ) लोकमें इसका उपदेश दिया; पूर्व तीर्थकर देवोंने इसे धारण किया; यह इस लोकमें ज्ञात सब शास्त्रोंका सार है; दुःख और दारिद्रय लानेवाले कर्मोको दूर करती है; भव्यजीवोंको सुखोंकी प्राप्ति कराती है; मोक्षरूपी विशाल गृहमें सदा आनन्ददायिनी है; मन्त्रसिद्धों और बुद्धिप्राप्तोंको आनन्द प्रदान करती है। अतीतमें भूमिपालक राजाओंने इसे ग्रहण किया; यह (दीक्षा) सुन्दरवेषधारिणी, शुभलेश्यायुक्त और गुणोंसे अलंकृत है। इस प्रकारकी तथा समस्त गुणोंकी भण्डाररूप दीक्षा को कनकप्रभ राजाने संतोषपूर्वक ग्रहण किया ॥१॥ २ कनकप्रभ द्वारा बारह श्रतानोंका अध्ययन विनययुक्त कनकप्रभने अपने गुरुकी आराधनाकर जिनागमोंका अध्ययन प्रारम्भ किया। (पहला ) आचारांग, (दुसरा) सूत्रकृतांग, (तीसरा) स्थानांग और चौथा समवायांग है जो एक प्रधान अंग है । पाँचवाँ अंग अनेक गुणोंका भण्डार है। उसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है । जिसमें तीनों लोकोंका प्रमाणभूत विवरण है वह श्रीज्ञातृधर्म कथा ( छठवाँ अंग है )। अत्यन्त प्रसिद्ध तथा अर्थसे विशुद्ध उपासकाध्ययन सातवाँ अंग है । अन्तकृतदशम आठवाँ और अनुत्तरदशम नौवाँ अंग कहा गया है। जिसे दसवाँ अंग कहा गया है वह प्रश्नव्याकरण एक विशाल अंग है। सबके द्वारा ज्ञात ग्यारहवाँ अंग विपाकसूत्र कहा गया है। बारहवाँ दृष्टिवाद है जो पाँच भागोंमें विभक्त है। उस मुनिवर ( कनकप्रभ ) ने इन बारहों अंगोंका पूर्णरूपसे श्रवणकर द्रव्य और क्षेत्रकी परिशुद्धि करनेपर चौदह पूर्वोको पढ़ना प्रारम्भ किया ॥२॥ कनकप्रभ द्वारा चौदह पूर्वांगोंका अध्ययन __ पहला उत्पादपूर्व है । अग्रायणीय दृसरा माना गया है । तीसरा वीर्यानुवाद कहा गया है। चौथा अस्तिनास्ति (प्रवाद ) के नामसे प्रकाशित है। ज्ञानप्रवाद और सत्यप्रवाद पाँचवें और छठवें हैं। आत्मप्रवाद और कर्मप्रवाद सातवें और आठवें कहे गये हैं। नौवाँ प्रत्याख्यानके नामसे तथा दसवाँ विद्यानुवादके नामसे ज्ञात हैं। ग्यारहवाँ पूर्व, जो पवित्र है, वह कल्याणके नामसे प्रसिद्ध है। बारहवेंका नाम प्राणावाय और तेरहवेंका क्रियाविशाल है। विस्तृत, श्रुतसार और सार्थक शब्द वाला चौदहवाँ पूर्व लोकविन्दु नामका है। ___ जिनागममें जो चौदह पूर्व कहे गये हैं उन सबका कनकप्रभ मुनिवरने श्रवण किया ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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