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________________ पाँचवों सन्धि स्वर्गके सुख भोगकर तथा समय आनेपर च्युत होकर देवोंमें श्रेष्ठ वह जम्बूद्वीपके अपर विदेह क्षेत्रमें पृथ्वीपति हुआ। ___ राजा वज्रवीर्यका वर्णन जम्बू द्वीपमें शोभनीक सीमाओंसे अलंकृत और श्रेष्ठ पर्वतोंसे युक्त अपर विदेह क्षेत्र है जहाँ गन्धविजय नामका देश है। उसमें सकल पृथ्वीके समस्त नगरोंको अलंकृत करनेवाली तथा सुखकारी प्रभंकरा नामकी नगरी थी। वहाँ वज्रवीर्य नामका अत्यन्त पराक्रमी राजा था । उसने समस्त पृथ्वीको अपने वशमें किया था। उसे किसकी उपमा दी जाए ? शंकरकी ? पर वह तो तीन नेत्रवाला और विषभोजी है। यदि पवनसे उपमा दी जाए तो वह अस्थिर है और कोई गुण ग्रहण नहीं करता। इन्द्रसे उसकी क्या उपमा हो सकती है ? वह तो हजार आँखोंवाला है और इससे लज्जित है। सूर्य, चन्द्र, समुद्र तथा पर्वत इनमें से किसीकी उपमा दी जाए तो ये सब सदोष हैं । किससे उपमा दी जाए ? यहाँ कोई कुबेर नामका यक्ष सुना जाता है किन्तु वह कृपण है। उससे कैसे उपमा दी जा सकती है ? विशाल गुणोंका धारक कोई माधव सुना गया है किन्तु वह अनेक आश्चर्यों और मायाका भण्डार है। कोई एक कामदेव भी सुना जाता है किन्तु वह शरीरहीन है। उससे क्या प्रयोजन हो सकता है ? पृथ्वीपर ऐसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं जिससे उसकी उपमा दी जाए । यदि उसका दर्पणगत प्रतिबिम्ब दूसरा (व्यक्ति माना जाए तो उससे ही उसकी उपमा दी जा सकती है ॥१॥ .. राजमहिषी लक्ष्मीमतीका वर्णन उसकी पट्टरानी कला और गुणोंसे श्रेष्ठ थी। पुष्पमालाके समान उसका दर्शन शुभकारी था। वह नवयुवती अत्यन्त मनमोहक थी। वह इस संसारमें लक्ष्मीमतीके नामसे विख्यात थी। घुघराले बालोंवाली वह प्रत्यक्ष लक्ष्मी ही थी। वह श्रेष्ठ त्रिवलीसे विभूषित, कृशतनु और सुन्दर थी। कोयलके समान उसका स्वर था तथा विशाल उसके नितम्ब थे। पीन, उन्नत और सघन उसका वक्षस्थल था जिसपर हार शोभा पाते थे। इन्दीवरके समान उसके नयन और प्रशस्त उसका मुख था। उसके शोभायुक्त अंग कृश और जघनस्थल स्थूल था। उसके कोमल कर मनोहर थे और शरीर प्रमाणबद्ध था। वह आभरणोंसे अत्यन्त शोभित होती थी। उस लक्ष्मीमती देवीको ब्रह्माने मानो तीनों लोकोंका रूप लेकर बनाया हो । अथवा इन भिन्न-भिन्न कल्पनाओंसे वहाँ क्या लाभ जहाँ कन्दर्प स्वयं निवास करता हो। वह मुनिश्रेष्ठोंके मनको मोहित करनेवाली, सरल स्वभाववाली, सुलक्षणोंसे युक्त, सकल आभूषणोंसे विभूषित कला और गुणोंसे श्रेष्ठ तथा अत्यन्त चतुर थी ॥२॥ राजकुमार चक्रायुधका जन्म .अन्य भवमें जिसे किरण वेग कहा गया है वह तपस्या कर स्वर्गमें देवके रूपमें उत्पन्न हुआ। वह अच्युत कल्पसे च्युत होकर लक्ष्मीमतीके उदरमें गर्भ रूपसे आया। वह पुण्यवान् नौ महीने गर्भमें रहकर कान्तिमान् चन्द्र के समान पृथ्वीपर For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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