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________________ चौथी सन्धि मुनिके उपदेशसे वह हाथी कलिकालके दोषोंको दूरकर सहस्रार विमानमें उत्पन्न हुआ। हे भविक जन, तुम उस कथा भाग ( उपदेश) को सुनो। गजकी तपश्चर्याका वर्णन मुनिके जानेपर वह हाथी उनके बताए अनुसार हथिनियोंका साथ छोड़ तप और नियममें लीन हुआ। वह उपवास के द्वारा मनकी कामभावनाको दबाता; नाना प्रकारके तपों द्वारा शरीरका शोषण करता; छह या आठ बारका भोजन त्यागकर फिर भोजन ग्रहण करता और मनसे भी हथिनियों के समूहको नहीं चाहता था। गजोंके समूह द्वारा जो रास्ता बनाया जाता था वह उसी मार्गपर चलता था। वह गजराज अन्य हाथियोंके पैरोंसे जमीनपर कुचला गया घास खाता था। जो नदीका जल हाथियोंके पैरोंसे गंदला हो जाता था वह गजवर उसीको पीता था। इस प्रकार वनमें जलको प्रासुक करते हुए उसने चार वर्ष तक तप किया । ( एक बार ) हथिनियोंके समूहको आगे कर गजोंका समूह पानी (पीने) के लिये नदी पर गया । इच्छानुसार गजसमहके पानी पी चुकने और लौटने पर उस गजवरने पानी पिया और जब लौटने लगा तब कीचड़में गिर पड़ा। व्रत और उपवाससे क्षीण वह पानीसे निकलने में समर्थ नहीं हुआ। ( अतः ) मुनीन्द्र के गुणोंका स्मरण करते हुए जल और कीचड़में फंसा पड़ा रहा ॥१॥ गजका आत्म-चिन्तन ___ तब वह गज बारह प्रकारको अनुप्रेक्षाओंके द्वारा भावपूर्वक आत्माका चिन्तन करने लगा। मैं किसीका नहीं हूँ; (और ) मेरा कोई नहीं है। जिनधर्मको छोड़कर अन्य कोई गति नहीं है। मुझे किसीने सहायता नहीं पहुँचाई। पृथिवीपर नमस्कृत परम जिनेश्वर देव ही अब मेरी शरण हैं । इस असार संसारमें मैंने अनन्त काल तक बहुत दुख सहा। नरक, तियञ्च, मनुष्य और देवगतिमें विषरूपी इन्द्रियसुखकी लालसासे परवशमें हो मैंने दारिद्रय और रोगोंका कष्ट सहा। अब मैं किसीके वशमें नहीं हूँ और स्वतन्त्रतासे तपश्चर्या कर रहा हूँ। जिनधर्म, नियम, गुण और शीलसे युक्त होकर भी क्या मैं अब दुःख सहूँगा ? इस प्रकार वैराग्ययुक्त होकर जब वह हाथी जलमें पड़ा था तब उसका वैरी वहाँ आया । पूर्व जन्मका विरोधी उसका महाशत्र वह कुक्कुट सर्प जलमें गजको देखकर क्रोधके वशीभूत होकर दौड़ा ॥२॥ __ सर्प-दंशसे गजकी मृत्यु, उसकी स्वर्गमें उत्पत्ति उस दुष्टने पूर्व वैरका स्मरण कर नुकीले दाँतोंसे हाथीको मस्तकपर काटा। गजने उस समय उदासीन भाव ग्रहण किया और जिनभगवान्के नमोकार मन्त्रका स्मरण किया। जब वन्दना समाप्तिपर भी नहीं आई थी तभी वह मृत्युको प्राप्त हुआ। वह अभिमानयुक्त अप्सराओं और देवोंके बीच सहस्रार कल्पमें उत्पन्न हुआ। वरुणा भी संयमको धारण कर ( मृत्युको प्राप्त हई तथा ) उसी स्वर्गमें देवीके रूपमें उत्पन्न हुई। वह देव लावण्य और रूपके कारण मद और मत्सरसे युक्त अप्सराओंके साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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