________________
पार्श्वनाथचरित
[१,१०कलाओं, गुणों और शीलसे विभूषित, पृथिवी पर प्रशंसित तथा सकल अन्तःपुरमें श्रेष्ठ वह (प्रभावती) ऐसी शोभायमान थी मानो मनुष्य और देवोंको दुर्लभ, त्रिभुवनकी वल्लभा महादेवी लक्ष्मी ही आई हो ॥९॥
१०
राज-पुरोहित और उसका कुटुम्ब उस राजाका विश्वभूति नामका पुरोहित था जो सुप्रसिद्ध और गुणोंकी राशि था। वह सुकुलीन, विशुद्ध और महानुभाव था तथा जिन शासनोंमें निरन्तर अनुराग रखता था। वह नित्य दया-धर्मकी प्रशंसा करता तथा सज्जनोंकी सेवा और दुर्जनोंका परिहार करता था। उसकी अनुद्धरी नामकी श्रेष्ठ पत्नी थी। जैसे करिणी गजके वशमें रहती है, वैसे ही वह अपने प्रियके अनुकूल रहा करती थी। मानवगतिमें सम्भव नाना प्रकारके भोगोंको भोगते हुए उन दोनोंके जब एक लाख वर्ष व्यतीत हुए, तब उन्हें दो पुत्र उत्पन्न हुए जो लक्षणों, गुणों और पौरुषसे समन्वित तथा उत्तम वाणीसे युक्त थे। उनमेंसे पहिला पुत्र कमठ चंचल स्वभावका था। दूसरा मरुभूति महानुभाव था। कमठकी पत्नी मदमत्त महागजकी करिणीकी शोभा धारण करनेवाली, शुद्ध (-हृदय ) तथा शीलवती थी। उसका नाम वरुणा था। दूसरे ( मरुभूति ) की पत्नी परलोक मार्गसे विपरीत आचरण करनेवाली तथा कुशील थी । उसका नाम वसुन्धरी था । इस प्रकारके स्वभावोंको धारण करनेवाली कन्याओंसे अपने पुत्रोंका सहज ही विवाह कर देनेके बाद उसके कुछ दिन सुखपूर्वक व्यतीत हुए।
एक दिन उस द्विजवरने बहुत वैराग्ययुक्त होकर, घरवार छोड़कर, अपना पद अपने पुत्रको देकर तथा विषयोंका त्यागकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली ॥१०॥
११ मरुभूतिको पुरोहित पदकी प्राप्ति तथा उसका विदेश-गमन अपने पतिके विरहमें अनुद्धरी घरवार छोड़कर तथा प्रव्रज्या लेकर निर्भयपूर्वक रहने लगी। इसी समय राजाने वार्ता सुनी कि उसका पुरोहित मोक्षयात्राको चला गया है। उसने सभा भवनमें बैठे हुए यह कहा-"असार संसारका भेद उस ब्राह्मणने जान लिया है। इसलिए नवयौवनमें ही उसने जिनदीक्षा धारण की है। वही एक कृतार्थ है तथा वही एक धन्य है जिसने इस चलायमान संसार-चक्रका त्याग किया।" ऐसा कहकर उस नरश्रेष्ठने पुरोहितके दोनों पुत्रोंको बुलवाया। उनमें कनिष्ठ मरुभूतिको सुहृद और विशेष सज्जन समझकर पुरोहित पदपर स्थापित किया । कमठको स्त्रीलम्पट कहकर छोड़ दिया। तब कमठ राजाकी नियुक्तिसे चूककर घर गया। सम्मानसे रहित वह अपने गृहकार्यमें लग गया। उसे और दूसरा कार्य नहीं सूझा । इस प्रकारसे जब उसका कुछ समय व्यतीत हुआ तब राजा विजयके निमित्त यात्रामें निकला। मरुभूति भी उसके साथ विदेशको गया: किन्तु अपना समस्त परिवार घर पर ही छोड़ गया।
इसी समय वह दुष्ट विनष्ट -चित्त तथा महामदोन्मत्त कमठ घरमें रहती हुई तथा चलती फिरती हुई अपनी भ्रात-वधूको देखकर उस पर अनुरक्त हुआ ॥११॥
१२
कमठ और मरुभूतिकी पत्नीकी विषयलम्पटता कलाओं और गुणोंसे सम्पन्न तथा नवयुवती उस मरुभूति-पत्नीको देखकर मदन बाणोंसे विद्ध वह कमठ मूर्छाको प्राप्त हुआ। वह मनमें क्षुभित हुआ और उसका शरीर उल्हासमय हो गया। जब वह चलती फिरती थी तब कमठ उसके पैरोंको चालको देखा करता था और विकारयुक्त होकर अनुकूल भाषण करता था। मरुभूतिकी पत्नीने कमठके अकस्मात् उत्पन्न हुए अनुरागभावको समझ लिया और वह भी विकारयुक्त होकर पुंश्चली स्त्रीके भाव प्रकट करती हुई उससे बातचीत करने लगी। पहिले उन दोनों के बीच चक्षुराग उत्पन्न हुआ; फिर दोनोंमें बातचीत होने लगी। परस्पर बातचीतसे उनमें खुब स्नेह बढ़ा । स्नेहसे रतिभाव उत्पन्न हुआ और रतिभावसे दोनों परस्पर विश्वासपात्र बन गए। संसारमें ऐसे ही पाँच प्रकारसे अनुराग बढ़ता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org