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________________ १२२] पउमकित्तिविरइउ [१४,१०,८ ऍत्यंतरेण किय पंच-वण मणहर दल-दीहर णहें णिसँण्ण । णाणा-विह अहिणव थिर सुवेस थिय गैयणि विहूसिवि णिरवसेस । घत्ता- गयणंगणु विविह-पारहिं गिरिऑयारहिं सघणहिँ घणहिँ विहूसियउ । णं पंच-पयार-विमाणहि अतुल-पमाणहिँ देव-सिमिरु आवासियउ ॥ १० ॥ 10 सविज-पुंज-लेहया पवाल-हेम-सोहया । तुसार-हार-देहया मुणाल-वण्ण-जेहेया। सियायवत्त-उज्जला ससिप्पहा-समुज्जला। पियंगु-संख-चण्णया सिही-समाँ-रवण्णया। तमाल-ताल-सामया जहिच्छ-रूव-कामया। णियाणणा मणोहरा सेमंथरा पोहरा। विचित्त-चित्त-चित्तियां खणंतरे ण चित्तिया। सुरंग-रंग-रंगियो अभेय-भंग-भंगिया। घणा घणा महंतया किया णहे समंतया। पैंयासिया तयारिसा ण दिया जयारिसा। घत्ता- बहु-विह-वण्ण पोहर पवर-मणोहर गयण-मैग्गि थिर णिम्मिय । जक्ख रक्ख सुर णरवर गह-गण विसहर जोयवि णह-यले विभिय ॥ ११ ।। 10 १२ मेहागमु पेंक्खिवि णहि विचित्तु कहाँ तिणुअणे सयले ण खुहिउ चित्तु । अज्झप्प-मुणिय-परमेसरहो पर खुहिउ ण चित्तु जिणेसरहो । जं चलिउ ण झाणहाँ देव-देउ चिंताविउ तं रिउ सावलेउ। कवणेण उवाएँ रिउहें अज्जु पाडउँ गज्जंतउ सीसि वैज्जु । चिंतवइ भयावणु असुरु जाम झाइजइ तें मणि पवणु ताम । सो दूसहु दारुणु भीमु चंडु गजंतु पयासिउ अइ-पंयंडु। १२ ख- जे वि गेह कि । १३ क- वण्णु । १४ क- णिसंण्णु । १५ ख- गयण । १६ क- पयारिहो। १७ क- आयारहो । २८ क- घणहे । (११) १ ख- देहया । २ ख- ससिपहा । ३ क- समाण संखया । ४ ख- णाण मणों । ५क- सुमच्छरा । ६ क,ख- चित्तया । ७ क-चितया; ख- चित्तया। ८ ख- सरंग रें। ९ ख- रंगया । १० ख- पवासिया। ११ ख- णिदिठ्ठया । १२ ख- मग्गे चिर णि । (१२) १ ख- पिक्खेवि णहे । २ क- कहु । ३ क- कासु । ४ क- क्खुहिउ । ५ ख- तें । ६ ख- कमणेण; क- कवणेणि । ७ क- वज । ८ ख- भयाणणु । ९ ख- झाडज्जइ । १० ख- पचंडू । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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