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पउमकित्तिविरइड
पंचम-पऍ पंच व अप्पसत्थ छउ सकु बहु देइ दुक्खु सत्तम पऍ अट्ठ विगह णिसिद्ध मैदा- राहु-रवि-रहि
म रवि राहु करेहि पीड दमऍ पऍ अविकरहि हाणि aate-कालि एयादसत्थ बारहमऍ पऍ पंच व अणिड बारहम जइ सणि लग्ग होइ
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घत्ता - जइ कहव ण लब्भइ लग्गु सयल - गुणेहि समिद्धउ । तो गोधूलि - वेलहि हो' विवाह णिरुतउ || ८ |
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जोवसिय बहु-गुण कहिउ लग्गु उ वियसिय-वयणुखणेण तित्थु कर लेवि रिंदें उ पडवण्णु कुमारें ऐँउ होउ ऍत्थंतर बहु-विह-पुर-जणो हु जगणा दीसँs परिभमतु जगणा पुच्छिउ भाणुकित्ति तं वयणु सुणिव वियसिय-मुद्देण
- यह उत्तर-पच्छिमेण तहि तावस णिवसहि" तविय- देह तहु वंदण-हत्तिए जाइ लोउ
सोमग्गह तिष्णि वि सुह-समत्थ । उपायहि सेसा परम-सॉक्खु । जमित्त व आगमे विरुद्ध ।" कौडलियहि अट्टम सदोस । जे अवर सेस ते करहि कीड । उप्पायहि बालों दुक्ख-खाणि । अट्ठ विगह जसु धणु देहि वत्थ । सोमग्गह तिणि वि सैंयल दिट्ठ । २४ तौ वंभणी व सुर-पाणु लेइ ।
रणाहों तं णिय-चित्ति' लग्गु । अच्छर धवलहरि कुमारु जित्थु । महु कण्ण परिणि करि वयणु एउ । परिट्ट असेसु विसयल-लोउ । वत्थालंकार-सुरइय-सोहु । मयणाहि-गंध- परिमल वहंतु । कि जाइ कहि दवत्ति । ऍ वत् कहिय र पुंगवेण । aणु अस्थि भयाण जोयणेण । तिण- कंद - फलासण विगय-मोह | बलि-धूव-गंध- परियण समेउ ।
घत्ता - तावस - तवसिहि भत्तउ एहु कुसत्थल- लोउ ।
दिवि दिवि जाइ असेसु वि अवरु ण मँण्णइ देउ ॥ ९ ॥
[ १३, ८, ७
१२ ख- पंचमयए । १३ क- पह | १४ ख जामेति । १५ क - भणमि । १६ ख में यहां निम्नलिखित घत्ता है तथा उसके बाद दूसरा कडवक प्रारंभ हुआ है-सोमग्गहु जामित्त गरुयहि करहि सदोहु | पावग्गह पुणु पंच वि दूसहि ँ लग्ग असेसु । १७ ख- अंगार । १८ क - सह; ख - गह । १९ ख - दसमइ पट्ठ वि य करें । २० ख - बालहिं । २१ ख- तेवाहु काले एकादसत्थु । २२ ख- देंति । २३ ख- सुह अणि । २४ ख- में अधिक पाठ-बारहमउ रवि णिद्दलइ माणु । न वि लब्भइ किं विण अदत्तदाणु । २५ ख - तावहि तहि अवसरि कुलिउ होइ । २६ ख - कहिउ विवाह पसिद्धउ ।
(९) १ ख- चित्त । २ ख- में यह पद छूटा है । ३ ख- हरें । ४ क- जेत्थु । ५ क- नरेंदें । ६ क- देवु । ७ कएम । ८ ख- 'तट्ठू । ९ ख इत्थंतरें । १० क दीसहि । ११ ख- गंध । १२ क- कोयु । १३ क - इह । १४ ख- क हं यर इ उ । १५ ख- तबस । १६ क- तवसि । १७ क- मण्णहि; ख- मासहि ।
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