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________________ संधि - ११ समरंगणि जणु महाभड हय-गय-रहहि समिद्धिउ । भुत्र-बेलहि ते दप्पुम्भड पास गरिंदें बद्धउ ॥ [ ध्रुवकं ] १ Jain Education International मैत्ता- मिलियै णरवर जाहि परिओसें इरि-से इय भयावणि भाकित उहि रंगणि । दोहे - चडिवि महारहे भड -सहिउ अहिमुहू चल्लिउ पैर-बलहॉ आनंदिय सयल जैण वर - सुहडहँ खंडंतु मणु. तूर हँस सुणेवि महाड केविड असित - वित्था के वि सुहड गय-पहरण-भासुर के वह भयंकर के वि सुपर-बल-बैंगलाउह के वि सुहड धावंति समच्छर एम सुहड अरूप्पर कुद्ध रिमाण - इंदु | सण्णज्झेवि रिंदु || दुवई - ताम तित्थु रण - रहसें पसाहिय-मणहर चारु-तूरहूँ । पैयइँ समर- कालि दस-दिसिहि मि" णरवर - माण - चूँरहूँ ॥ थिय पहरणइँ लेवि दप्पुभेंड । याहरण- विहूसिय-वत्था । उद्विय पर बैंलें णाइ महासुर । रवि-सणि-मंगल गाइ खयंकर । सव्वल - सैंति-फरिस - सॅल्लाउह । णं पंचाणण रिय-पंजर । भिडिय महाहवे बहु-जस-लुद्ध | धत्ता- रविकित्तिरिंदहो साहणु पर-बल-दलण-समत्थउ । विविहाउह-सहस-पसाहणु बहु-विह-पहरण हत्थउ || १ ॥ २ • ता- जउ-रायहाँ सुहड सण्णद्ध गुडिय भीम मयगल महाबल पेवर तुरय बहु-विह समुज्जल (१) १ क- बलिहे जिणिवि दप्पु । २ ख जेण । ३ क मात्रा । क प्रति में केवल इस कडवक में तथा ख प्रति में सब कडवकों में छंदों के नाम छंदों के अंत में दिए है । ४ क मिल्लिय णरवरि जाय परिओसि । ५ क- जणि । ख- जणे । ६ क - सेण्णे । ७ ख आईउ भयावणे । ८ ख- रणंगणे । ९ क- दोहडा । १० ख गयंदु । ११ १३ ख - रहसि | १४ क- तुरयं । १५ ख एहइ | १६ ख - वि । १७ क- चूरयं । ख १९ ख - 'भडू । २० क वित्थ । २१ क- वत्थ । २२ ख- बल । २३ क- दट्टु । २४ क- मंगल । २५ क- वगलामुह । २६ ख - करिस सत्थि से० । २७ ख में इसके पूर्व अधिक पाठ के वि सुहड रेवंगिधणुद्धर । परबलघाय दिति निठुरकर । के वि सुहड वग्गति सत्ता । नियविष्णाण मग्ग दरिसंता । २८ क- पूरियमच्छर । २९ ख अवरोप्पर । ३० क- नरेंदहो । ख- पुर । १२ क- नरेंदु । चूरहि । १८ ख भट्ट । (२) १ क- वस्तु । २ ख धय । ३ क-जेच्च । रह कड्डिय विविह-य पल्लाणिय-मण-पत्रण- जव For Private Personal Use Only 5 10 15 www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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