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________________ ६८ ] उच्चाइय कलसे सुवण्ण-वण्ण जयकार करेंवि संव्वामरेहिसंपुण्ण कुंभ सय सहस लक्ख अमरिंदें खिवहि ँ जलु जिणहो देहि जह सुरवइ तह सुरवर अणेय विहवेण देउ हाविउ जिर्णिदु जिणु सोहइ हाविज्जंतु सेलि जिण - हवण-सलिलु खल खल खलंतु चउ-दिसँहि“ पॅलोटिउ लहरि दि 'हि" कालि कियउ जं सुरहि ण्हवणु हाविउ तित्थु जिणु सुरहि तेम धत्ता Jain Education International पउम कित्तिविरइड १९ कहि पसि सुंदरा कहि पसि अच्छरा " एसि विंतरा ae a fore कहि पसि णच्चियं पंडु - सिलहि" परमेसरु देउ जिणेसरु सोहइ न्हाविज्जंतउ । खीरोव-सलिलै धवलुज्जलु कलहि समुज्जलु चंदु णाइ सैंकंतउ ॥ १९ ॥ २० कहि पसि काहला कहि सिपण्या कहि पसि दुग्गिय aft पसि मंडिया कहि ँ परति भावणा कहि एसि तारया कहि ँ एसि आउला (१९) १ ख श । २ क- सयायरेहि; ख- सव्वायरेहि ८ क - "वहे । ९ ख - सु । १० ख- 'ले वजंति तूर सु; १३ ख - शि| १४ क - १९ ख - हू । २० क- 'हे जल - भरिय मनोहर थिर रवण्ण । अहिसित्तु जिणंदु सुरासुरेहि । आणंति देव कुवलय-दलक्ख । लक्खण-अणेय-भूसिय-ससोहि । far कलस लेवि देवहि समेय । तोसि मणि देवहि संहु सुरिंदु | मंगल - पवित्ति सुर-असुर - रेलि" । सोहइ. "गिरि - सिहरे समुच्छलंतु । गिरि - सिहर-पवर - तरुवर पहवंतु । daas re aorte कवणु । पण ओहि रिसहु जेम । । ३ क - क- रोलि । पल्लोट्टि । १५ क दें । १६ ख - तं काले । । २१ ख- ल । २२ ख- संकं । हे' ठिया पुरंदरा । पैरोपरं समच्छरा । जिणुच्छंवे णिरंतरा । रगत खेउ सैरा । सुरूव-दाम-चच्चियं । For Private Personal Use Only रसंत भेरि महला । भवंति पंच - वेण्णया । महंत-हार - सोहियं । सुरंगया अखंडिया | ठिया हे सुहात्रणा | भवंति चारु तोरया । सुरासुरा समाउला । [ ८, १९, १– 10 (२०) १ ख- 'हि । २ ख- में यह आधी पंक्ति छूटी है । ३ ख व वे । ४ख 'ति । ५ ख - सुस्स । ६ ख - कृष्ण । ७ ख- दुगि । ८ ख- °डियं । ९ ख वार । १० क- रम । 5 5 ४ करें । ५, ६ ख - 'हे । ७क- 'हे । ११ ख- सेले । १२ ख- धवलुज्जलु उबलंतु । १७ ख - हि । १८ ख- में 'हि' छूटा है । 10 www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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