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पउमकित्तिविरइउ
[३, ३,१
पणवंतही ता सुदयावरण
आसीस 'दिण्ण परमेसरेण । सा तेण वि इंछिय थिर-मणेण वर-माल जेम धारिय सिरेण । पणवेविणु चलणहि विणय-जुत्तु सत्थाहिउ पभणइ भत्तिवंतु । मुणि सामिय कहि सम्मत्त-रयणु कह सिद्धि-महापैहे होइ गमणु । कह तुट्टइ कलि-मल-पाव-गंहि कह फिट्टइ जम्मण-मरण-'विहि । कह छिज्जइ दारुणु णरय-दुक्खु कह लब्भइ अविचल परम-सुक्खु । कह देव विमाणहँ जीउ जाइ कह होइ पुरिमु कल्लाण-भाइ। कह "बंधइ गणहर-जिणहँ गुत्तु कह होइ पुरिसु उत्तिमु महंतु । पत्ता- कहि केण भडारा दोसे होइ मणुवु दालिदिउ ।
कॉण-कुंट-वेसंढउ होइ केम वियलिंदिउ ॥ ३॥
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तं वयणु सुणिवि पिय-भासएण बहु-संजमधर-पिहियासएण। तव-तविय-तेय-गुण-णिब्भरेण अरविंदें बोल्लिउ मुणिवरेण । अहाँ सत्थवाहि सम्मत्त-रयणु हउँ कहमि सुणिजहि एय-मणु । अरहंतु भडारउ देव-देउ
अट्ठारह-दोसे-विमुक्क-लेउ । जो मण्णइ अणुदिणु कय-पंणाउ सम्मत्तधारि तहाँ होइ गाउ । जीवायजीव मग्गण पर्यत्य
सिद्धत कहिय जे के वि अत्थें । तेही किज्जइ जं सद्दहण-भाउ सो वुच्चइ फुडु सम्मत्त-राउ । णिम्मलउ होइ तं चउ-गुणेहि मइलिज्जइ पंचहि कारणेहि। धत्ता- उँवगृहण मुणिवर-दोसहो" भग्ग-चरित्तहों" परिठवणु ।
वच्छल्ल पहावर्णं चारि वि" गुण सम्मत्तहाँ थिर-करणु ॥४॥ (३) १ ख- ह । २ क- सुदिण्णिय मुणिवरेण । ३ क-हे । ४ ख- विणयजुत्तु । ५क-° पह । ६ ख- वें। ७ - कहि छे । ८ क- ण । ९क- ल मोक्ख सों। १० क-हे। ११ ख- होइ पुरिसु समत्त-सीलु । १२ ख- सुसीलु । १३ ख- माणुसु । १४ ख- कण-कोट-विसंठिउ ।
(४)१ ख- णेवि पिहियासवेण । २ ख- ण । ३ ख- द । ४ ख-धरिवि समणु । ५क- सु । ६ ख- पसाउ । ७ क-इ; ख- °ए । ८ ख- ह । ९ख- द्धेवि । १० ख- "त्थू । ११ ख- हु । १२ ख- ताणुरा । १३ ख- वर । १४ क- अव । १५ क- हिं । १६ ख- हु । १७क, ख-दु। १८ ख-हाणं चयारि । १९ क- में यह पद छूटा है।
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