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पउमकित्तिविरइउ
अहिमाण-कलंकिउ कमहु विप्पु णीसरिउ पुरहोणं काल-सप्पु। गउ सिंधु-णइहें चल-पुलिण-मग्गु तव तवणहिँ तहि पंचम्गि लग्गु । मरुभूइ महासुहु अणुहवंतु
को वि कालु जाउ अच्छइ रमंतु । तहि अवसरि सुमरिउ कमहु भाय मुच्छाविउ वयणहों णट्ट छाय । उठेवि स-वेयणु करुण-गी?
अरविंदहो गउ पय-कमल-पीहु । मेल्लंतें अंसुव-जल-पवाहु
विण्णत्तु रुवंतइँ णरहँ णाहु। दप्पुब्भड-रिउ-दारिय स-सेव मइँ भायरु घल्लिउ तइय देव । एवहि हउँ आणउँ करि पसाउ उप्पण्णु देव महु करुण-भाउ । पत्ता- तं मरुभूइ-पयंपिउ णिमुणिवि जंपिउ पभणइ एम णराहिउ ।
मं जाएसहि तेत्तहि भायरु जेत्तहि सो पुणु पुष्व-विरोहिउ ॥ १९॥
मरुभूइ वयणु मणिवि णिरत्थु मं अप्पणु आणहि मुहि णिरत्थु । मं जाणहि जह वीसरिउ कोहु सो अज्जु वि सुमरइ तिय-विरोहु । अण्णाण तवोवणि सो पइछ परमत्थु को वि णउ तेण दिछ । संसार-तरण-कारणु ण कोइ पय-पूरणु परे अवयरिउ लोइ। जइ कहव पाएँ मिलहि तासु तो फुडउ करइ देहही विणासु । अण्णु वि मरुभूइ कहेमि तुझु सत्यहि भासिउ परी गुज्यु । मुंबई-यणे अबुहे हुयासे सप्पे गरे वसणसत्ते जलें खले सदप्पे। सत्तहँ मि" एहु वीसासु लोइ जो जाइ हासु सो जैणहाँ होइ । घत्ता- मरुभूइ समासे तुज्यु मइँ कहिउ गुज्नु जं भावइ तं सुण करि ।
महु पुणु गमणु ण भावइ तहिँ परिआवइ जाइ कहव जइ तासु धरि" ॥२०॥
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(१९) १ क- इहि । २ ख- "जहि तेतहि । ३ ख- भायस जित्त । ४ ख- पइ ।
(२०) १ क- णे । २ ख- णर अत्थु । ३ क- तेहि । ४ ख- 'णु । ५ ख- परि । ६ क- 'माइ । ७ ख-'ह वि विणा । ८क- 'त्थे । ९ख- म । १० क- जुवइयण णि यं वु हि वा हि वि सप्पि । परवसण सत्ति जलि खलि सदप्पि । ११ क- वि चयउ वी । १२ ख- जप्यहु सोइ । १३ ख- कहिउ विसेसें जं भा । १४ ख- "य" । १५ क- घरे।
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