________________
पउमकित्तिविरइउ
[१, १५, १
भावज्ज अयाणिय एह वत्त उत्तमहो जणहाँ अंकिउ वि दोसु महु घरिणिए सँहु तुहुँ वहहि खेउ तुहुँ बिहि मि अम्ह जणणिए समाण 'बोल्लव्वउँ तुज्झु ण होइ एउ अम्हारिमु जइ सिसु करइ रोसु "गोइव्वउँ तुम्हहँ सो जि" होइ महुँ कमहु जैट्ट पिय-सरिसु भाय
में कह वि कहेसहि खैलि अजुत्त । जण-भणणे दूसइ कुलु असेसु । तें एहउ जंपहि सावलेउ। घेरि परियणि सयलि वि कैय-पमाण । णिय-घरहों मूढ परिकरहि भेउ । पणएण पयासइ कहव दोसु । वड्ढत्तणु लब्भइ एम लोइ। किं अम्हहँ गिण्हेंइ कहिँ मि जाय ।
घत्ता- बिहि मि परोप्परु अम्हहँ दुल्लह-लभैहँ गमिउ कालु स-सणेहउ ।
उभय-कुलेहि मि अणहिउ विउसहि गरहिउ बॉल्लु ण बॉल्लिउ एहउ ॥ १५॥
10
पत्याउ लहेविणु पुणु विताएँ अहाँ संढ-चरिय तुहुँ फुडु अयाणु में महिल-पराहउ सहहि मूढ जे सूर वीर णर लोइ होति पर-णारिउ जे णर अहिलसंति जं किं पुणु णिय अहिमाण-ठाणु तं केव सहइ णरु दुण्णिवारु तुहुँ पुणु पइ एहउ को वि जाउ पत्तिज्जहि अहवइ जइ ण मज्झु तो सइँ जि णिहालहि करि दवत्ति
ऍउ देवरु वुत्तु हसंतियाएँ। तउ देहि णाहि चारहडि-माणु । मइँ कहिय वयण पइँ किय अलीढ । ते को वि पराहउ ण विसहति । ते वि णाहि महाबल संसहति । विड दीसइ घरि घरिणिऍ समाणु । जो करहिं धरइ कर-हत्थियारु । थोडो वि जेण ण वि पुरिस-भाउ । णिय-चित्ते मण्णइ ऍउ असज्झु । जइ ऍकहि बे वि ण ताइँ थंति ।
10
घत्ता- कमहु पाउ जणि मुत्तऍ णिचऍ भुत्तएँ विसय-महारस-लुद्धउ ।
दिवि दिवि रयणिहि आवइ तव पिय कामइ ण गणइ कि पि विरुद्धउ ॥१६॥ (१५) १ ख- उज्जि । २ ख- कहि कहें। ३ ख-ले अजत्त । ४ ख- उत्ति । ५ क- आको वि; ख- अकिउ । ६ ख- वयणेण । ७ ख- तुहु सहु । ८ ख- में यह शब्द घूटा है। ९ ख- रे । १० ख- ‘णे । ११ ख- किय । १२ कबोलेव्वउ, ख- बोल्लेवउ । १३ ख- गोवेवउ । १४ ख- वि । १५ ख- एहु। १६ ख- ठू जेठू पिउ स। १७ ख- गेहइ । १८ ख- रोप । १९ ख- लंमेहीं गमियउ कालु सणेहउ । २० ख- उहय । २१ ख- बुल्लिं ।। (१६) १ क- देउरु । २ क- इ । ३ क- महि । ४ ख- जै महियल पराहउ सहइ मूढु ।
५ ख प्रति का पत्र क्रमांक छह गुमा हुआ है अतः १६ वें कडवक की पूर्वी पंक्ति से १९ वें कडवलको ९ वीं पंक्ति का पाठ केवल एक प्रति के आधार पर ही संशोधित किया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org