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________________ व्याकरण भीमाउइ-वणि पइसेवि साहु ५. ८. ५ वणे पइट्ठ दारुणे ७. ८. ७ णिमिसळे भीसण-चणे पइट्ठ १३. १०. ६ रविकित्तिहे सहु णयरहो पइट्ठ- १३. २. १ में पइस धातु के योग से संबंध विभक्ति आई है। (iii) अवयर तथा आय के योग से भी अधिकरण विभक्ति आई है यथा--- अवयरिउणाइ महियलि अणंग १.८.५ मत्त-लोइ अवयरियउ १. ८. ९ अवयरिउ सलिलि ६. ११. ४ अवयरिउ णाइ इह महिहि सुरु ९. ७. ४ हयसेणहो सो अत्थाणि आउ ९. ६. ८ वाणरसि-णयरिहि आइयउ ९. ६. ११ (iv) जिस उद्देश्य से कोई क्रिया की जाए वह उद्देश्य सप्तमी विभक्ति ग्रहण करता है यथाणिग्गउ पुरजणेण जलकीडहि ६. ११. २ णियाणई, वेदइ जिगवराह ३.१६.६ (iv) पा. च. में सति सप्तमी के भी पर्याप्त उदाहरण प्राप्त हैं यथागए मुणिवरे, करि तब-णियम लागु ४. १. ३ गए गिभि, भयावणु वरिसयालु अवयरिउ ६. १२. ३ मई होते ताय सुपुत्ते, जइ तुहुं अप्पुणु जाइरणे १०. १. १२ वजंतहिं तुरहि सूसरेहिं मय-मत्त-विलासिणिणेउरेहिं । णवि सुम्मइ कण्णहि किं पि वयणु ९. १. ९. में अधिकरण के स्थान में करण विभक्ति प्रयुक्त हुइ प्रतीत होती हैं । सति सप्तमी प्रयोग में करण विभक्ति का प्रयोग स्वयंभू ने भी किया है ( देखिए पउमचरिउ २.१०. ८, ६.१४. ९, १२. ७. ८) किन्तु पा. च. में ही अन्यत्र 'एहि विभक्ति का प्रयोग अधिकरण के लिए हुआ है अतः हम यहां भी यही अनुमान कर सकते हैं कि सूसरेहि तथा णेउरेहिं में अधिकरण विभक्ति ही है न कि करण विभक्ति । तुह गए विएसे एत्थु वित्तु १. १४. ५; मूल पणट्टए रिणुधणु जेम वि १४. ५. ९; केवलणाणुप्पण्णए गुणसंपुण्णए आसणु चलिउ सुरिंदहो १५. १. १. आदि सति सप्तमी प्रयोगों में कर्ता की सप्तमी विभक्ति का लोप हो गया है। 'वजंत तूर' मंगल-रवेण, हयसेणहो घरु पाविय कमेण ८. २३. ६ में भी सती सप्तमी के प्रयोग है जहां अधिकरण विभक्ति का लोप अनुक्तकर्ता तथा कृदन्त दोनों से ही हो गया है। (९) समासों का प्रयोग अधिक नहीं हुआ फिर भी कुछ सामासिक शब्दों का उपयोग हुआ है । वे समास अधिकतः बहुत लम्बे नहीं हैं । अधिकांश तो दो या तीन पदों के हैं फिर भी कुछ समास ५ या ६ पदों के भी प्राप्त हैं जो यदा कदा छंद के एक चरण के अंत तक पहुंच गए हैं। पर छंद के एक चरण से बड़े समास नहीं। गद्य के विषय में यह मान्यता रही है कि 'ओजः समासभूयस्त्वं एतद्गद्यस्य जीवितम् ' इस ग्रन्थ में तीन कडवक गद्य में हैं पर उनमें भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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