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## Chapter 1: 8.75. Touch is Explained
Touch is of two types: general and specific.
**General Touch:**
* **Mithyadrishtis (wrong-believers):** They touch the entire realm.
* **Sasadan Samyagdristis (right-believers with attachment):** They touch an immeasurable portion of the realm, as well as 8 or 12 out of 14 parts of the Trasanali (the realm of the three worlds).
* **Samyagmithyadrishtis (mixed-believers) and Asanyata Samyagdristis (right-believers without restraint):** They touch an immeasurable portion of the realm, as well as 8 out of 14 parts of the Trasanali.
* **Sanjata Samyagdristis (right-believers with restraint):** They touch an immeasurable portion of the realm, as well as 6 out of 14 parts of the Trasanali.
**Specific Touch:**
* **Kayayoga (body-yoga):** This becomes the realm of all beings.
* **Vedamargana (path of knowledge):** This becomes the realm of all beings.
* **Kasaya Margana (path of passions):** This becomes the realm of all beings.
* **Jnana Margana (path of knowledge):** This becomes the realm of all beings.
* **Samyama Margana (path of restraint):** This becomes the realm of all beings.
* **Darshan Margana (path of perception):** This becomes the realm of all beings.
* **Leshya Margana (path of subtle bodies):** This becomes the realm of all beings.
* **Bhavya Margana (path of becoming):** This becomes the realm of all beings.
* **Samyaktva Margana (path of right-belief):** This becomes the realm of all beings.
* **Sanjna Margana (path of consciousness):** This becomes the realm of all beings.
* **Ahar Margana (path of food):** This becomes the realm of all beings.
**Specific Touch for Different Beings:**
1. **Sasadan Samyagdristis to Kshina Kasaya Gunasthanas (right-believers with attachment to those with subtle passions):** They touch an immeasurable portion of the realm.
2. **Two-sense, three-sense, four-sense, and five-sense beings without consciousness:** They touch an immeasurable portion of the realm.
3. **Conscious beings except for those who are in the state of Samudghata (liberation) with Sayogika Kevalis (liberated beings with karmic attachments):** They touch an immeasurable portion of the realm.
**Specific Touch during Samudghata:**
* **During the Samudghata of Sayogika Kevalis:** All beings touch the realm.
* **During the Lokapurana Samudghata (liberation of the entire realm):** The following Marganas are found: Manushya Gati (human path), Panchendriya Jati (five-sense beings), Trasakaya (suffering body), Kayayoga (body-yoga), Apangataved (knowledge without defects), Akasaya (without passions), Kevaljnana (omniscience), Yathakyata Samyama (perfect restraint), Keval Darshan (omniscient perception), Shukla Leshya (white subtle body), Bhavya (becoming), Kshayika Samyaktva (right-belief that is fading), Na Sanjni Na Asanjni (neither conscious nor unconscious), and Anahar (without food).
* **During the Pratar Samudghata (liberation of the remaining realm):** An immeasurable portion of the realm is touched.
**Specific Touch for Different Marganas:**
* **Kayayoga, Bhavya, and Anahar:** These three Marganas touch the realm during Lokapurana and Pratar Samudghata.
* **All other Marganas:** They touch an immeasurable portion of the realm except during the above-mentioned states.
**Conclusion:**
This is how the touch of the realm is determined.
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-118875]
प्रथमोऽध्यायः 8.75. स्पर्शनमुच्यते। तद् द्विविध सामान्येन विशेषेण च । सामान्येन तावन्मिथ्यादृष्टिभिः सर्वलोकः स्पृष्टः । सासादनसम्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ द्वादश चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यमिथ्याग्दृष्टयसंयतसम्य दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा, मार्गणामें काययोग मार्गणा, वेदमार्गणामें नपुंसक वेदमार्गणा, कषाय मार्गणामें क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय मार्गणा, ज्ञान मार्गणामें मत्यज्ञान और ताज्ञान मार्गणा, संयम मार्गणामें असंयत संयम मार्गणा, दर्शनमार्गणा में अचक्षुदर्शन मार्गणा, लेश्या मार्गणामें कृष्ण, नील और कापोत लेश्या मार्गणा, भव्य मार्गणामें भव्य और अभव्य मार्गणा, सम्यक्त्व मार्गणामें मिथ्यादृष्टि सम्यक्त्व मार्गणा, संज्ञा मार्गणामें संज्ञी असंज्ञी मार्गणा तथा आहार मार्गणामें आहार और अनाहार मार्गणा इनका सब लोक क्षेत्र बन जाता है। 2. सासादन सम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तकके जीवोंका और अयोगकेवलियोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही है। 3. दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पंचेन्द्रियोंमें असंज्ञियों का क्षेत्र भी लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। 4. संज्ञियोंमें समुद्घातगत सयोगिकेवलियोंके सिवा शेष सबका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इन नियमोंके अनुसार जो मार्गणाएँ सयोगिकेवलीके समुद्घातके समय सम्भव हैं उनमें भी सब लोक क्षेत्र बन जाता है । शेषके लोकका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण ही क्षेत्र जानना चाहिए। सयोगिकेक्लीके लोकपूरण समुद्घातके समय मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस काय, काययोग, अपंगतवेद, अकषाय, केवलज्ञान, यथाख्यात संयम, केवल दर्शन, शुक्ल लेश्या, भव्यत्व, क्षायिक सम्यक्त्व, न संज्ञी न असंज्ञी और अनाहार ये मार्गणाएँ पायी जाती हैं इसलिए लोकपूरण समुद्घातके समय इन मार्गणाओंका क्षेत्र भी सब लोक जानना चाहिए। केवलीके प्रतर समुद्घातके समय लोकका असंख्यात बहुभाग प्रमाण क्षेत्र पाया जाता है। इसलिए इस समय -जो मार्गणाएँ सम्भव हों उनका क्षेत्र भी लोकका असंख्यात बहुभाग प्रमाण बन जाता है। उदाहरण के लिए लोक पूरण समुद्घातके समय जो मार्गणाएं गिनायी हैं वे सब यहाँ भी जानना चाहिए । इनके अतिरिक्त शेष सब मार्गणाएँ ऐसी हैं जिनका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही प्राप्त होता है। लोक पूरण और प्रतर समदघातके समय प्राप्त होनेवाली जो मार्गणाएं गिनायी हैं उनमें-से काययोग, भव्यत्व और अनाह
र इन तीनको छोड़कर शेष सब मार्गणाएँ भी ऐसी हैं जिनका भी क्षेत्र उक्त अवस्थाके सिवा अन्यत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण प्राप्त होता है । इस प्रकार क्षेत्रका निर्णय किया।
875. अब स्पर्शनका कथन करते हैं—यह दो प्रकारका है—सामान्य और विशेष । सामान्यकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टियोंने सब लोकका स्पर्श किया है । सासादन सम्यग्दृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों व असंयतसम्यग्दृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भागका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें-से कुछ कम आठ भागका स्पर्श किया है। संयतासंयतोंने लोकके असंख्यातवें भागका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह 1. मेरुपर्वतके मूलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 2. मेरु पर्वतके मूलसे नीचे कुछ कम पाँच राजु और ऊपर सात राजु । यह स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 3. मेरु पर्वतके मूलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है । असंयत सम्यग्दृष्टियोंके मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा भी यह स्पर्शन बन जाता है।
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