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## The Liberation of All (Sarvarthasiddhi)
**[112 88$8.** Liberation is the complete detachment from all karmas. The path to attain it is called the path. The singular form 'path' is used to indicate that all paths together constitute the path to liberation. This eliminates the possibility of individual paths leading to liberation. Therefore, right faith (samyakdarshan), right knowledge (samyakgyan), and right conduct (samyakcharitra) together constitute the direct path to liberation. - **8 9.** To explain the characteristics of right faith, which was mentioned earlier, the following is stated:
**Faith in the true nature of things is right faith. ||2||**
**$10.** The word 'tattva' (true nature) refers to the general nature of things. How? The word 'tat' (that) is a pronoun, and pronouns refer to general things. The nature of 'tat' is 'tattva'. What is 'tat'? It means the state of being as it is.
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सर्वार्थसिद्धौ
[112 88$8. सर्वकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः। तत्प्राप्त्युपायो मार्गः । मार्ग इति चैकवचननिर्देशः समस्तस्य मार्गभावज्ञापनार्थः । तेन व्यस्तस्य मार्गत्वनिवृत्तिः कृता भवति । अतः सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज्ञानं सम्यक्चारित्रमित्येतत् त्रितयं समुवितं मोक्षस्य साक्षान्मार्गो वेदितव्यः । - 8 9. तत्रादावुद्दिष्टस्य सम्यग्दर्शनस्य लक्षणनिर्देशार्थमिदमुच्यते
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥2॥ $10. तत्त्वशब्दो भावसामान्यवाची। कथम् ? तदिति सर्वनामपदम्। सर्वनाम च सामान्ये वर्तते । तस्य भावस्तत्वम् । तस्य कस्य ? योऽर्थो यथावस्थितस्तथा तस्य भवनमित्यर्थः । अर्यत
8. सब कर्मोका जुदा होना मोक्ष है और उसकी प्राप्तिका उपाय मार्ग है। सूत्रमें 'मार्गः' इस प्रकार जो एकवचन रूपसे निर्देश किया है वह, सब मिलकर मोक्षमार्ग है, इस बातके जतानेके लिए किया है। इससे प्रत्येकमें मार्गपन है इस बातका निराकरण हो जाता है। अत: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तोनों मिलकर मोक्षका साक्षात् मार्ग है ऐसा जानना चाहिए।
विशेषार्थ-पूर्व प्रतिज्ञानुसार इस सूत्रमें मोक्षमार्गका निर्देश किया गया है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षका साक्षात् मार्ग हैं यह इस सूत्र का तात्पर्य है। सूत्रकी व्याख्या करते हुए सर्वार्थसिद्धि में मुख्यतया पाँच विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है जो इस प्रकार हैं-1. दर्शन आदिके पहले 'सम्यक्' विशेषण देनेका कारण । 2. दर्शन आदि शब्दों का व्युत्पत्त्यर्थ । 3. एक ही पदार्थ अपेक्षाभेदसे कर्ता और करण कैसे होता है इसका निर्देश । 4 सूत्रमें सर्व प्रथम दर्शन, तदनन्तर ज्ञान और अन्तमें चारित्र शब्द क्यों रखा है इसका कारण । 5. सूत्र में 'मोक्षमार्गः' यह एकवचन रखने का कारण । तीसरी विशेषताको स्पष्ट करते हुए जो कुछ लिखा है उसका भाव यह है कि जैन शासनमें पर्याय-पर्यायीमें सर्वथा भेद न मानकर कचित् भेद और कथंचित् अभेद माना गया है इसलिए अभेद विवक्षाके होनेपर कर्ता साधन बन जाता है और भेद विवक्षाके होनेपर करण साधन बन जाता है। आशय यह है कि जब अभेद विवक्षित होता है तब आत्मा स्वयं ज्ञानादि रूप प्राप्त होता है और जब भेद विवक्षित होता है तब आत्मासे ज्ञान आदि भिन्न प्राप्त होते हैं। चौथी विशेषताको स्पष्ट करते हुए जो यह लिखा है कि जिस समय दर्शनमोहका उपशम, क्षय और क्षयोपशम होकर आत्माकी सम्यग्दर्शन पर्याय व्यक्त होती है उसी समय उसके मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानका निराकरण होकर मतिज्ञान और श्रुतज्ञान प्रकट होते हैं। सो यह आपेक्षिक वचन है। वैसे तो दर्शनमोहनीयका क्षय सम्यग्दृष्टि ही करता है मिथ्यादृष्टि नहीं, अतः दर्शनमोहनीयके क्षपणाके समय मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानके सद्भाव का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता, क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय इस जीवके मतिज्ञान और श्रतज्ञान ही पाये जाते हैं। इसी प्रकार जो सम्यग्दष्टि जीव वेदकसम्यक्त्वको उत्पन्न करता है उसके भी यही क्रम जान लेना चाहिए। शेष व्याख्यान सुगम है।
9. अब आदिमें कहे गये सम्यग्दर्शनके लक्षणका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
अपने अपने स्वरूपके अनुसार पदार्थोका जो श्रद्धान होता है वह सम्यग्दर्शन है ॥2॥
$10. तत्त्व शब्द भाव सामान्यका वाचक है, क्योंकि 'तत्' यह सर्वनाम पद है और सर्वनाम सामान्य अर्थमें रहता है अतः उसका भाव तत्त्व कहलाया। यहाँ 'तत्' पदसे कोई भी 1. समस्तमार्ग- आ., दि. 1, दि. 2। 2. किं पुनस्तत्त्वम् । तद्भावस्तत्त्वम् । पा. म. भा. पृ. 59 । 3. अर्थ्यते-आ. दि. 21 .
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