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________________ मानसुनतत्प ततो धावत धावत, गृहीत गृहीत, लगत लगत' इत्यादि पूत्कुर्वतां सर्वात्मशक्या युगपत् प्रहरतां हाहारवं कुर्वतां च मोहादिचरटानां चिरात् कथं कथमपि विरचय्य तद्वारे निवेशितमेतदिति । ततःशिरो हृदयं च हस्ताभ्यां कुट्टयन् विषण्णो मोहमहाचरटः, समस्तमपि विलक्षीभूतं तत्सैन्यम् , निलीनं च सनायकमेव । ततः क्षेमेण शिवरत्नदीपं प्रति गन्तुं प्रवृत्तं तद् यानपात्रमिति ॥ -मलधारीयश्रीहेमचन्द्रसूरिकृतविशेषावश्यकवृत्तिप्रान्ते । इस उल्लेखको पढनेसे प्रतीत होता है कि आपने आवश्यकहारिभद्रीवृत्तिटिप्पनककी तरह नन्दिहारिभद्रीवृत्तिटिप्पनककी भी रचना की थी। यद्यपि श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज इस टिप्पनकरचनाका उल्लेख आप करते ही हैं, फिर भी आश्चर्यकी बात यह है कि- इनके ही शिष्य श्री श्रीचन्द्रसूरि महाराजने प्राकृत मुनिसुव्रतस्वामिचरित्रकी प्रशस्तिमें अपने दादागुरु और गुरुके, संक्षिप्त होते हुए भी महत्त्वके चरित्रका वर्णन करते हुए श्रीहेमचन्द्राचार्य की ग्रन्थकृतियोंका उल्लेख किया है, उसमें सभी कृतियोंके नाम दृष्टिगोचर होते हैं, सिर्फ इस नन्दिटिप्पनकका नाम उसमें नहीं पाया जाता है । वह उल्लेख इस प्रकार है जे तेण सयं रइया गंथा ते संपइ कहेमि ॥ सुत्तमुवएसमाला-भवभावणपगरणाण काऊग । गंथसहस्सा चउदस तेरस वित्ती कया जेण ॥ अणुओगद्दाराणं जीवसमासस्स तह य सयगस्स । जेगं छ सत्त चउरो गंथसहस्सा कया वित्ती ॥ मलावस्सयवित्तीए उवरि रइयं च टिप्पणं जेणं । पंचसहस्सपमाणं विसमदाणावबोहयरं ।।। जेण विसेसावस्सयसुत्तस्सुवरि सवित्थरा वित्ती। रइया परिप्फुडत्था अडवीससहस्सपरिमाणा ॥ मुनिसुव्रतस्वामिचरित्रप्रशस्ति । इस उल्लेखमें श्री श्रीचन्द्रसरिने अपने गुरुकी सब कृतियोंके नाम दिये हैं। सिर्फ नन्दिटिप्पनकका नाम इसमें नहीं • है, जिसका नामोल्लेख खुद मलधारी श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराजने विशेषावश्यकत्तिके प्रान्तभागमें किया हैं। यद्यपि मुनि चरितके इस उल्लेखको प्राचीन ताडपत्रीय प्रतियोंसे मीलाया गया है, तथापि सम्भव है कि प्राचीन कालसे ही नन्दिटिप्पनकके नामको निर्देश करनेवाली गाथा छूट गई हो । अस्तु, कुछ भी हो, फिर भी जब विशेषावश्यकवृत्तिके अंतमें खुद श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज आप ही नन्दिटिप्पनकरचनाका निर्देश करते हैं तो यह निर्विवाद ही है कि आपने नन्दिटिप्पनककी रचना अवश्यमेव की थी, जो आज नहीं पाई जाती है। नन्दीविषमपदटिप्पनक - इस ग्रन्थाङ्कमें पृ. १८२ से १८६में नन्दीसूत्रवृत्तिविषमपदटिप्पनक मुद्रित है । इस टिप्पनकको श्री चन्द्रकीर्तिमरिकी कृति बतलाया हैं, किन्तु यह रचना वास्तवमें उनकी रचना नहीं है। इस टिप्पनकके मुद्रण समय खंभातकी वि. सं. १२१२में लिखित ताडपत्रीय प्रतिको ध्यानमें रख कर, एवं पाटनके भंडारोंकी कुछ प्रतियों के अन्त भागमें निरयावलिकादिपंचोपाङ्गपर्याय और नन्दीवृत्तिविषमपदपर्यायको इसी टिप्पनकके साथ देख कर · श्रीचन्द्रकीर्तिमरिकृत' ऐसा लिख तो दिया है, किन्तु खंभातके भंडारकी और जैसलमेरके भंडारकी प्राचीन ताडपत्रीय निःशेषसिद्धान्तपर्याय और सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय की प्रतियोंको गौरसे देखी तब यह समझ भ्रान्त प्रतीत हुई है। खंभातके भंडारकी प्रतिमें और जैसलमेरभंडारकी प्रतिमें अलग अलग सिद्धान्तोंके पर्याय होनेसे दोनों प्रतियाँ जुदी जुदी है। अतः इतना निश्चित होता है कि-खंभातकी निःशेषसिद्धान्तपर्याय की प्रति, जो जिस वर्षमें प्रन्थरचना हुई उसी वर्षमें लिखी हुई है-, उसमें जितने सिद्धान्तोंके पर्याय हैं, उतनी ही श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिकी रचना है। शेष सिद्धान्तपर्यायोंकी रचना किसी अन्य गीतार्थ की रचना है, जिसका नाम ज्ञात नहीं है। खंभात भंडारकी प्रतिमें नन्दीविषमपदपर्याय नहीं है, तब जैसलमेर भंडारकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001441
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages248
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Metaphysics, & agam_nandisutra
File Size24 MB
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