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प्राकृतपैंगलम्
की विशेषता न मानकर द्राविड़ भाषा-परिवार का प्रभाव माना है। द्राविड़ भाषा-परिवार में क्रिया का विशेषणवत् प्रयोग पाया जाता है तथा वहाँ वर्तमान आदि के क्रिया रूपों का विकास कृदंतों से हुआ है । प्रा० पै० में कहीं भी भूतकालिक तितों का प्रयोग नहीं मिलता, वे अप० में भी नहीं पाये जाते भूतकालिक कर्मवाच्य कृदंत के लिये संस्कृत- प्राकृत में तृतीयांत कर्ता पाया जाता है, किंतु प्रा० पैं० में इसका प्रयोग कर्तृवाच्य में भी होने लगा है। दोनों तरह के उदाहरण ये हैं
(१)
(२)
कर्मवाच्य प्रयोग :पिंगले कहिओ (१.१६),
फणिदे भणीओ (२.१५), पिंगलेण वखाणिओ (२.१९५),
सव्व लोअहि जाणिओ (२.१९६),
रह धुल्लिअ पिअ (१.९२),
किअउ कट्ठ हाकंद मुच्छि मेच्छहके पुत्ते (१.९२),
धूलिहि गअण झंपिओ (१.१५६) ।
भाववाच्य तथा कर्तृवाच्य प्रयोग :मेरु मंदर सिर कंपिअ (१.९२),
सव्व देस पिकराव वुल्लिअ (१.१३५),
एम परि पलिअ दुरंत (१.१३५),
भंजिअ मलअ चोलवइ णिवलिअ गंजिअ गुज्जरा ( १.१५१),
गिरिवर सिहर कंपिओ (१.१५५),
फुलिअ महु (१.१६३),
अवअरु वसंत (१६३),
कमठ पिट्ठ टरपरिअ (१.९२),
चलिअ हम्मीर (१.९२),
फुल्लिआ णीवा । (१.१६६)
१२४. संयुक्त वाक्य:- प्रा० ० से संयुक्त वाक्यों के कतिपय स्थल ये है
(१) जो चाहहि सो लेहि । (१.९)
(२) सेर एक जइ पावउँ घित्ता, मंडा वीस पकावउँ णित्ता । (१.१३०)
(३) जो हठ रंक सोइ हउ राआ । (१.१३०)
(४) सो माणिअ पुणवंत, जासु भत्त पंडिअ तणअ । (१.१७१).
(५) जसु चंद सीस पिघणह दीस। सो संभु एठ तुह सुब्भ देउ ॥ (१.१७६)
इन वाक्यों में प्राय: संबंधवाचक (relative ) वाक्य को पहले रक्खा जाता है। संबंधवाचक वाक्य ( relative sentence) को निर्देशात्मक वाक्य (indicative sentence) से पूर्व रखने की प्रणाली को काल्डवेल ने न० भा० आ० पर द्राविड़ प्रभाव माना है ।
१. Caldwell Comparative Grammar of the Dravidian Languages. p. 55 (1913 ed.)
२. “... and herein there is a possible influence of Dravidian, for in Dravidian the verb has an adjectival force, it being really a noun of agency with reference to the subject. The Dravidian tenses developed out of participles; and in the development of Aryan, we find a gradually increasing employement of the participle forms, to the exclusion of the IE. finite verbal forms.
- O. D. B. L. Vol. I. § 81 (d), p. 174
३. Compurative Grammar of Dravidian Languages. p. 55
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