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________________ पद-विचार ४७९ ब्लाख के मतानुसार इसकी व्युत्पत्ति *मध (अवेस्ता 'मद' (Moba) से हुई है, जो सं० 'मध्य' से ही मानी है। इसी से हि० 'माँहि, में' सम्बद्ध हैं। संदेशरासक में इसका सविभक्तिक रूप 'महि' भी परसर्ग के रूप में पाया जाता है - 'मणमहि' (मन में) । प्रा० प० रा० में 'माँ', 'माँहि' रूप मिलते हैं ।२ । प्रा० पैं० में प्रयुक्त अन्य शब्द जो परसर्ग के रूप प्रयुक्त हुए हैं, निम्न हैं : ७. उवस्-िइसका सम्बन्ध संस्कृत 'उपरि' से है । 'सअल उवरि' (१.८७) । यह अधिकरण के परसर्ग के रूप में प्रयुक्त हुआ है, इसीसे हि० 'पर' का विकास हुआ है। ८. उप्पर, उप्परि-ये भी सं० 'उपरि' से संबद्ध हैं तथा अधिकरण कारक के परसर्ग हैं; 'वाह उप्पर पक्खर दइ' (१.१०६) (हि. 'पर') । ९. मज्झ-मज्झे-यह परसर्ग भी अधिकरण कारक के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उदाहरण, चित्तमज्झे (२.१६४), वग्गमज्झ (२.१६९), संगाम मज्झे (२.१८३) । इसकी व्युत्पत्ति सं० मध्ये से ही है। इसीसे प्रा० प० रा० परसर्ग मझारि, माझिरे, तथा अवधी माँझ, मँझिआरा, मझारी संबद्ध हैं। संख्यावाचक शब्द ६१००. संख्यावाचक विशेषण के गणनात्मक तथा क्रमात्मक दोनों तरह के रूप प्रा० पैं. की भाषा में मिलते हैं। (क) गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण के निम्न रूप उपलब्ध हैं : १. एक्क, एक्को, एकं, एक्कु, एक्कउ, एक्के, एक्कइ, एक, एक्का. सविभक्तिक रूप. एक्केण, एक्के, एक्कक्के (< सं० एक). २. दु, दुइ, दुहुइ (< द्वौ द्वौ), दुअउ, दो, दुहु, बि, बिण्णि, बिण्णो, बिहु, बीहा, बे; समस्त पद में - दुक्कल. (< दु-बि < द्वौ, (द्वि-)). ३. तिअ, ति, तिज्जे, तिणि, तिण्णि, तिण्णिआ, तिण्ण, तिण्णो, ती, तिअ, तीणि. अधिकरण कारक ए० व० रूप 'तीए'. (< त्रि-त्रीणि (त्रि-)). ४. चउ, (चउकलउ, चउक्कल), चो (चोअग्गला), चारि. (< चतु-चत्वारि < चतुर्). ५. पंच (< पंच). ६. छअ, छआ, छउ, छह, छक्का, खडा; 'छ' समास में (छक्कलु, छक्कलो). ( < षष् (षट्)). ७. सत्त, सत्ता. (< सप्त). ८. अट्ठ, अट्ठा, अट्ठह, अट्ठए, अट्ठाइँ-अट्ठाइ; 'अठ' समास में (अठक्खरा, अठग्गल, अठतालिस, अठाइस) ( < अष्ट-अष्टौ). ९. णव (< नव). १०. दह, दहअ, दहा, (< दश). ११. एआरह, एआरहि, एआरहहि, एगारह, एग्गारह, एग्गाराहा, एगारहि, एग्गारहहि, इग्गारह, गारह, गारहाइँ; इह दह. (< एकदश, एकादश). १२. बारह, बारहा, बाराहा, बारहहि, बारहाइ. (<द्वादश). १३. तेरह ( < त्रयोदश). १४. चउदह, चउद्दह, चउद्दहही, चाउद्दाहा, चोद्दह, चोदह, दह चारि (< चतुर्दश). १५. पण्णरह, पण्णाराहा, दह पंच (< पंचदश). १६. सोलह, सोलहाइ, सोला ( < षोडश). १७. सत्तारह, दह सत्त (< सत्तरस-सत्तरह (प्रा०). < सप्तदश). १. Sandesarasaka : (Study) $ 73 (4) ३. Tessitori: 0. W. R. $ 68 २. Tessitori : 0. W. R. $ 68 ४. Saksena: Evolution of Awadhi $28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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