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________________ १.१९] अह तिअलगण [ दुइअ ] पत्थारस्स णामाइँ मात्रावृत्तम् सुरवइ पटव्व ताला करतालाणंद छंदेण । णिव्वाणं ससमुद्दं तूरं एह प्पमाणेण ॥ १९ ॥ [ गाहू ] १९. त्रिकलगण द्वितीय प्रस्तार के नाम सुरपति, पटह, ताल, करताल, आनन्द, छंद, निर्वाण, समुद्र, तूर्य, ये आदिगुरु त्रिकल (SI) के नाम हैं । टिप्पणी- तूर ८ तूर्य (दे० 'तूर्यधैर्यसौंदर्याश्चर्यपर्यन्तेषु र: ' प्रा० प्र० ३०१८ के अनुसार 'र्य' में 'य' का लोप) । अह तिअलगण तइअ पत्थारस्स णामाइँ भावा रसतांडवअं णारीअं कुणह भाविणिअं । तिलहुगणस्स कइअरो इअ णामं पिंगलो कहइ ॥२०॥ [ गाहू २०. त्रिकल गण तृतीय प्रस्तार के नाम भाव, रस, तांडव, तथा नारी के जो जो पर्यायवाची नाम हैं, वे सभी सर्वलघु त्रिकल गण (III) के नाम हैं, ऐसा पिंगल कहते हैं ।. टिप्पणी- कुणह< कृणुत; दे० टिप्पणी $ ३ । 'तांडवअं, णारीअं, भाविणिअं - 'अं' सम्बन्धकारक ब० व० का चिह्न है, इसका विकास - 'आम्' से है, जो पु०स्त्री०नपुं० हलन्त शब्दों का षष्ठी ब० व० का विभक्ति चिह्न है - गच्छताम्, शरदां, प्रावृषां । अह दुकाणं णामाइँ Jain Education International [ ११ उररसणाभरणं चामरफणिमुद्धकणअकुंडलअं । वंकं माणसवलअं हारावलि एह गुरुअस्स ॥२१॥ [ गाथा | २१. द्विकल गण प्रथम प्रस्तार के नाम नूपुर, रसनाभरण, चामर, फणी, मुग्ध, कनक, कुंडल, वक्र, मानस, वलय, हारावलि ये गुरुरूप द्विकल (S) के नाम हैं । टिप्पणी- पोउर ८ नूपुर ('एन्नूपुरे' प्रा०प्र० १.२६ से ऊ के स्थान पर 'ए', 'कगचजतदपयवां प्रायो लोप:' से मध्यग 'प' का लोप । इस सम्बन्ध में यह संकेत कर देना अनावश्यक न होगा कि एक साथ दो 'उ' कार (ऊ- उ होने के कारण प्रथम को 'ए' बना देना 'असावर्ण्य' का उदाहरण है । इसी 'णेउर' से राजस्थानी 'नेवरी' (पैर का आभूषण) शब्द 'उ' का 'व' के रूप में सम्प्रसारण कर तथा स्त्रीलिंग वाचक 'ई' प्रत्यय जोड़ कर विकसित हुआ है । बिलहु णामाईं freur परम सुपिए बिल्ल्हु ति समासु कइदिट्ठे । अह चउमत्तह णामं फणिराओ पइगणं भणइ ॥२२॥ [ गाहू] सुरअलअं गुरुजुअलं कण्णसमाणेण रसिअरसलग्गं । मणहरण सुमइलंबिअ लहलहिअं ता सुवण्णेण ॥२३॥ [ गाथा ] १९. पटव्व - B. पढमं, N. पढव्व, O पटव। ससमुद्दे -C. शसमुहं । २०. भावा - A. D. भाव; O भावो । तांडवअं-D तांडवेहिं । णारीअं - A. णारीअह । भाविणिअं - A भामिणिअं । B. भामिलिअं; कइअरो - A. कइवरो, B. कईवरो। कहइ - B. कहई । २१. कणअकुंडलअं -D. कणयकुंडलअं । बंक-0. वक्कं । एह-B. अणेण, C. °ण्णेण, D. एक्क N. O. णेण । २२. णिअपिअ परमउ सुपिए - B. 'परम्", C. अ पिअ परमउ सुपिए; D. णिअ पिअ परम सुपिअए, K. सुपिअं O. 'सुप्पिअ । बिल्लहु-B. बिलहु, K. बिल्लहु, D. बिल्लहुए। बिल्ल्हु ति - O विल्लहु ति । ति समासु -D. तिस्समासु, C. ति समासु । कइदिट्टं - C. कइदिठ्ठे । समासु कइदिट्ठ-0. समासकइदिट्ठ । २३. सुरअलअं - K. सुरअणणं, D. सुरतणअं B. सुरअलआ, C. सुरअरअं, N. सुरअलअं (संस्कृतच्छायायां 'सुरतुलतां') । रसलग्गं -D. रसलग्गा, K. रसण्णग्गा (संस्कृतच्छायायां 'रसनाग्रं'- विश्वनाथपंचाननकृतटीकानुसारं), O. मणलग्गं । लहलहिअं - B. C. लहलहिउ तासु; K. लहुलहिअं N. लहलहि अइता सुवण्णेण । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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