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१३८]
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प्राकृतपैंगलम्
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[२.१४२
जहा,
एं अस्थीरा देक्खु सरीरा घरु जाआ, बित्ता पुत्ता सोअर मित्ता सवु माआ ।
काहे लागी बब्बर वेलावसि मुज्झे, एक्का कित्ती किज्जइ जुत्ती जइ सुज्झे ॥१४२॥ [माया] १४२. उदाहरण:
देख, यह शरीर अस्थिर है, घर, जाया, वित्त, पुत्र, सहोदर, मित्र सभी माया है । बब्बर कहता है, तू इसके लिए मायावश मुग्ध होकर क्यों विलम्ब कर रहा है; यदि तुझे सूझे तो तू किसी युक्ति से कीर्ति (प्राप्त) कर ।
टि०-अत्थीरा-(=अत्थिर < अस्थिरं, छन्दोनिर्वाहार्थ रूप) दक्ख -अनुज्ञा म० पु० ए० व० ।
सरीरा, वित्ता, पुत्ता, मित्ता-(छन्दोनिर्वाहार्थ प्रातिपदिक का दीर्घरूप अथवा इन्हें 'आ' वाले ब० व० रूप भी माना जा सकता है, जैसा कि एक टीकाकार ने इन्हें ब० व० रूप माना है।)
काहे लागी-'लागी' सम्प्रदान का परसर्ग इसकी व्युत्पत्ति सं० 'लग्न' से है। वेलावसि-< विलम्बयसि; अथवा वेलापयसि (नाम धातु का णिजंत रूप), वर्तमान म० पु० ए० व०। किज्जइ-कर्मवाच्य । सुज्झे-वर्तमानकालिक प्र० पु० ए० व० (हि० सूझे। तारक छंद :
ठइ आइ लहू जुअ पाअ करीजे, गुरु सल्लजुआ भगणा जुअ दीजे ।
पअ अंतह पाइ गुरु जुअ किज्जे, सहि तारअ छंदह णाम भणिज्जे ॥१४३॥ १४३. जहाँ प्रत्येक चरण के आरम्भ में दो लघु स्थापित कर एक गुरु तथा दो शल्य (लघु) किये जाय तथा दो भगण दिये जायें, तथा चरण के अंत में दो गुरु किये जायें,-हे सखि, उस छंद का नाम तारक कहा जाता है।
टि०-करीजे, दीजे, किज्जे, भणिज्जे-कर्मवाच्य रूप । अंतह-< अंते; अधिकरण ए० व० । छंदह-< छंदसः, संबंध ए० व० ।
जहा,
__णव मंजरि लिज्जिअ चूअह गाछे, परिफुल्लिअ केसु णआ वण आछे ।
जइ एत्थि दिगंतर जाइहि कंता, किअ वम्मह णत्थि कि णत्थि वसंता ॥१४४॥ [तारक] १४४. उदाहरण:
आम्रवृक्ष ने नई मंजरी धारण कर ली है; किंशुक के नये फूलों से वन पुष्पित है; यदि इस समय में (भी) प्रिय विदेश (दिगंत) जायेगा, तो क्या कामदेव नहीं है, अथवा वसंत नहीं है?
टिप्पणी-लिज्जिअ, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । चूअह गाछे < चूतस्य वृक्षे–'ह' संबंध कारक ए० व० का चिह्न ।। गाछ-देशी शब्द (राज० 'गाछ'), 'ए' करण कारक ए० व० का चिह्न । केसु < किंशुकं > किंसुअ> केसुअ> केसु ।
१४२. दक्खु-N. देक्ख । सरीरा-K. शरीरा । सोअस्-B. सोहर । मित्ता-A. मित्त । वेलावसि-C. N. वोलावसि । मुझेC. N. मुझ्झे । किज्जइ-C. किज्जहि । सुज्झे-C. N. सुझ्झे, A. सूझ्झे, B. सूज्जे । १४३. गुरु सल्लजुआ... दीजे-N. गुरु सल्लजुआ गुरु सल्लजुआ जे, C. गुरु सल्लजुआ जुअ दीजे । पअ अंतह-N. पअअन्त हि C. पअ अंतहि । तारअ छंदह-N. तारअच्छन्दह । णाम-C. णाअ । भणिज्जे-N. भणीज्जे । १४३-C. १४० । १४४. णव-C. ठवि, ०. णवि । मंजरि-A. मज्जरि। लिज्जिअ-A. किज्जिअ । गाछे-N. गाच्छे । केसु णआ-A. B. केसू णवा, C. केसुलआवण । एत्थि-C. एत्थ । जाइहिO. जाइह । किअ-C. कि । णत्थि-N. णच्छि । १४४-C. १४१ ।
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