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आचाराङ्ग
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के. आर. चन्द्र
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विभाग-1 (ब) प्रस्तावना
एक अनुरोध (आंचारांग के इस तरह के नये तरीके से संपादन को योग्य रूप से समझने के लिए प्राकृत भाषा के विद्वानों और पाठकों से सर्वप्रथम एक नम्र अनुरोध है कि अर्धमागधी भाषा के प्राचीन एवं मूल स्वरूप को जानना आवश्यक है और इस सम्पादित संस्करण के पाठों को पचाने के लिए पूर्व भूमिका के रूप में मेरे तीनों ग्रन्थों (प्रकाशक : प्राकृत जैन विद्या विकास फंड, अहमदाबाद-380015)1. प्राचीन अर्धमागधी की खोज में, 1991- 92 2. Restoration of the Original Language of
Ardhamagadhi Texts, 1994 और 3. परंपरागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी,
1995 को पढ़ने का कष्ट करें जिससे स्वीकृत पाठों को समझने में किसी प्रकार की भ्रान्ति न हो।।
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