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________________ परिशिष्ट 311 आगमों का सम्पादन एक जटिल प्रक्रिया है । सम्पादन के सही मानदण्डों को अपनाकर किये जाने वाले सम्पादन कार्यों को रूढिवादी लोग 'आगमों में फेरबदल' जैसे फतवे देकर न केवल हतोत्साहित करते हैं, अपितु आगम-ग्रन्थों के मूलस्वरूप का निर्धारण ही नहीं करने देते हैं । व्याकरण आदि शास्त्रों के सहयोग एवं सूक्ष्म किंतु विशद अध्ययन के बिना यह कार्य कदापि संभव नहीं है । इस दिशा में गंभीर अध्ययन का परिचायक एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य उक्त पुस्तक के रूप में सामने आया है, जो कि विज्ञजनों में नितान्त स्पृहणीय एवं अनुकरणीय आदर्श है । प्राचीन भारतीय साहित्य-सम्पदा के वैज्ञानिक एवं प्रामाणिक अध्ययन, सम्पादन एवं पाठ-1 - निर्धारण के लिए प्रत्येक प्राचीन भाषा का इस विधि से अध्ययन अपेक्षित है, तथा यह पुस्तक इस दिशा में कार्य करने के इच्छुक विद्वानों के लिए अच्छा मोडल बन सकती है । परिश्रमी एवं मेधावी विद्ववर्य डो. के. आर. चन्द्रा का यह प्रयास अभिनंदनीय है । 'प्राकृत विद्या' नयी दिल्ली, जुलाई - सितम्बर, १९९५ - सम्पादक डो. के. आर. चन्द्रा प्राकृत भाषा के विशिष्ट विद्वान् हैं। उन्होंने आगमों में प्रयुक्त अर्द्धमागधी के प्राचीन रूपों का निर्धारण करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है । सन् १९९२ में उन्होंने 'प्राचीन अर्धमागधी की खोज में' पुस्तक लिखकर इस कार्य को एक दिशा दी तथा अब Restoration of the Original Language of Ardhamāgadhi Texts पुस्तक प्रकाशित कर उन्होंने अपने कार्य को बलवत्तर रूप में पुष्ट किया है। आज अर्द्धमागधी भाषा में जो आगम उपलब्ध हैं उनमें अनेक शब्दों के पाठ-भेद दिखाई देते हैं । अर्द्धमागधी का प्राचीन रूप कौनसा है, इसे निर्धारित करने का प्रयत्न डो. चन्द्रा से पूर्व किसी अन्य विद्वान् ने नहीं किया । डो. चन्द्रा ने इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित आचारांग सूत्र में दिए गए पाण्डुलिपि - पाठ - भेदों को ही आधार बनाया है तथा इस खण्ड में उन्होंने यथा, तथा, प्रवेदितम्, एकदा, एक:, एके, एकेषाम, औपपादिक / औपपातिक, लोकम्, लोके एवं क्षेत्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001438
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages364
LanguagePrakrit, Gujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Research
File Size14 MB
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