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________________ प्रथम अध्ययन का पुनः सम्पादन [ २५९] संस्करणों के पाठों की तुलना प्रा. परिन्नातकम्मे त्ति बेमि । परिन्नाय-कम्मे त्ति बेमि । आ. परिण्णायकम्मे (५४) तिबेमि । जै. परिण्णाय-कम्मे । -त्ति बेमि ।। म. परिण्णातकम्मे त्ति बेमि । सत्तमे उद्देसगे प्रा. ५६. पभू - एजस्स दुगुञ्छनाए आतङ्कदंसी शु. पहू य एजस्स दुगुञ्छणाए आयंक-दंसी पहू - एजस्स दुगुंछणाए(५५) आयंकदंसी जै. १४५. 'पहू - एजस्स' दुगंछणाए ॥ १४६. आयंकदंसी म. ५६. पभू - एजस्स दुगुंछणाए आतंकदंसी प्रा. अहितं ति नच्चा । जे अज्झत्थं जानति से बहिया शु. 'अहियं' ति नच्चा । जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया आ. अहिंयंति णच्चा, जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जै. अहियं ति नच्चा ॥ १४७. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया म. अहियं ति णच्चा । जे अज्झत्थं जाणति से बहिया प्रा. जानति, जे बहिया जानति से अज्झत्थं जानति । शु. जाणइ; जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ; आ. जाणइ, जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ, जै. जाणइ । जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ । म. जाणति, जे बहिया जाणति से अज्झत्थं जाणति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001438
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages364
LanguagePrakrit, Gujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Research
File Size14 MB
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