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________________ आचाराङ्ग [१६४] के. आर. चन्द्र ४. ध्वनि-परिवर्तन के कतिपय उदाहरण (शब्दों के संदर्भ के लिए देखिए विभाग-५) . यथावत् घोषीकरण लोप क अनेक, एक, नरक, लोक आहारग, पत्तेग, अन्तिय, ओववातिय, परवागरण धम्मयं, विसोत्तिय अल्पप्राण व्यंजन च | | त अगुत्त, अनगार, भगवता 'चेव', स्वरान्त शब्द के पश्चात् कयवर, पाईन, 'च' अव्यय का प्रयोग मोयन, समायार अविजान, परिजान, पूजन, वीजितुं पोतया, रसया अक्खात, अहित, आतङ्क, आतुर, करओ (कुर्वतः) इतो, उवरत, एते, जाति, पडिघात, (= *करतः) परिनात, भवति, भूत, मतिमं, सोणित, वीजितुं, सम्पातिम आदानीय, उदर, ओववादिय, उब्भिया पमाद, पवदमान, पाद, सदा, हिदय अनुपालिया उवरत, ओववादिय, - पडिवन्न, परितावेन्ति, पाव, विरूवरूव, वि(अपि) प य आउसन्त अमाया, किरियावादी: गोमय, तसकाय, सयं व आवट्ट, पवेदित, पुढवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001438
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages364
LanguagePrakrit, Gujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Research
File Size14 MB
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