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प्रथम अध्ययन का पुनः सम्पादन
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शब्दों में ध्वनि-परिवर्तन
स्वर कण्ठ्य ङ् और तालव्य ञ् का स्वर के साथ या द्वित्व रूप में प्रयोग नहीं पाया जाता है परंतु सजातीय व्यंजनों के साथ उनके प्रयोग मिलते हैं, जैसे
आतङ्क, अवकङ्घति, सिङ्ग, जङ्घा; अनुसञ्चरति, दुगुञ्छनाए
मात्रात्मक परिवर्तन के कुछ विशिष्ट प्रयोग इस प्रकार हैं- कम्मावादी (कर्मवादी), लोकावादी (लोकवादी), मिज्जा (मेद्य), अप्पाण (अप्पण-आत्मन्), सम्मुति (सम्मति या स्वमति), बेमि (ब्रूमि) ।
व्यंजन असंयुक्त व्यंजन अपवाद के रूप में अव्यय में प्रारम्भिक 'य' का 'अ' मिलता है - अधा (यथा) [परवर्ती प्राकृतों में 'जधा' और 'जहा' रूप मिलते हैं]
प्रारंभिक और मध्यवर्ती दन्त्य नकार यथावत् पाया जाता है । अपवाद के रूप में न=ण के उदाहरण इस प्रकार हैं -
णं (नूनम्), नाण (ज्ञान), पन्नाण (प्रज्ञान), अनाण(अज्ञान), अप्पाण (आत्मन्) इणं (एतत्), छहारुणी (स्नायु)
मध्यवर्ती असंयुक्त व्यंजन मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजन ('ट' वर्ग के सिवाय) क,ग,च,ज,त, द, य, का कभी कभी लोप पाया जाता है। मध्यवर्ती प का प्रायः व मिलता है और मध्यवर्ती व का प्रायः लोप नहीं मिलता है ।
मध्यवर्ती महाप्राण व्यंजन कभी कभी 'ह' में बदले हुए मिलते हैं । महाप्राण 'थ' का 'ध' में परिवर्तन भी मिलता है ।
मध्यवर्ती व्यंजनों में पाया जाने वाला ध्वनिगत-परिवर्तन निम्न तालिकाओं में प्रस्तुत किया जा रहा है ।
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