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आचाराङ्ग
[१४१]
के. आर. चन्द्र अप्पेके'1 हिसिसु मे त्ति वा वधेन्ति'2, अप्पेके हिंसन्ति'3 मे
70.
मजैवि.
अट्ठाए अणट्ठाए अत्थाए (भोगत्थाए)
सूत्रकृ. 1.4.2.295
अत्थ
(अत्थसंपदाणं) (इच्चत्थं)
(अत्थेहि) (इच्चत्थतं) (अत्थसंजुत्तं) (आजीवत्थं) (अत्थेहि) (किमत्थं)
Il titlu lililius si
आचा. 2.15. 747 आचा. 1.1.2.14, 3.25, 4.36, 5.44, 6.52, 7.59; 2.1.63 सूत्रकृ. 2.6.802 सूत्रकृ. 2.6.828 दशवै. 5.2.256 ऋषिभा. 41.9 सूत्रकृ. 2.6.802 ऋषिभा. 38.23, एवं इस ग्रंथ के हरेक अध्ययन की अन्तिम पंक्ति ऋषिभा. 38.26 ऋषिभा. 38.26 ऋषिभा. 38.26 ऋषिभा, 24.35, 39 (पृ. 89.13) ऋषिभा. 30.5, 38.18 ऋषिभा. 38.18 मजैवि. नास्ति मजैवि.
(अत्थसंतती) (अत्थादाईण) (अत्थादायि) (जहत्थं) (णिरत्थकं) (सत्थकं) अप्पेगे वधेन्ति वहन्ति वहति
71.
आगमो, जैविभा. आचा. प्रति* पू, जे, ला. मजैवि.
73. हिंसंति . . . हिंसन्ति
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