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प्रथम अध्ययन का पुन: सम्पादन [११६ ]
चतुर्थ उद्देशक सञ्जतेहि सदा जतेहि सदा अप्पमत्तेहि ।
॥ जे पमत्ते गुणट्ठिते से हु दण्डे5 पवुच्चति तं परिन्नाय6 मेधावी17 "इदानि18 नो,
जमहं पुव्वमकासी पमादेन20" ॥ 11. संजतेहिं
मजैवि. 12. सता
मजैवि. सदा
आचा. 1.1.4.33, 3.2.116, 3.123, 4.4.143, 146 (दो बार), 5.4.164, 165, 6.173, 6.3.187, 4.195; 2.1.1.334, 2.3.463, 3.1.483, 2.503, 3.519, 4.2.552, 5.1.580, 2.587, 6.1.601, 2.606, 7.1.620, 9.1.644, 13.729 सूत्रकृ. 1.1.4.88, 2.2.116 (दो बार), 3.157, 3.1.170, 4.2.278, 5.1.320, 2.337, 339, 8.435; 15.609; 16.634; 2.3.747
दशवै. पाठा. 1.1 अचूपा. 13. जतेहिं
मजैवि. 14. अप्पमत्तेहिं मजैवि. दंडे
मजैवि. दण्डे परिणाय
मजैवि. परिनाय 17. मेहावी
मजैवि. मेधावी
आचा. प्रति* खं 3. 18.
मजैवि. इयाणिं
शु, आगमो, जैविभा. आचा. पाठा. 1.1.4.33, पाटि. 1,
इदाणी
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