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प्रकाशकीय
आनन्द का विषय है कि हमारी संस्था का ग्यारहवाँ ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । इस ग्रंथ का मुख्य विषय हैं परंपरागत प्राकृत भाषा के नियमों की समीक्षा और अर्धमागधी जैसी प्राचीन भाषा पर वे किस सीमा तक लागू होते हैं। आगे प्रस्तावना में इसे स्पष्ट किया गया है ।
इस प्रकार के विद्याकीय कार्यों में पं. श्री दलसुखभाई मालवणिया और डॉ. श्री ह. चु. भायाणी का निरन्तर जो मार्गदर्शन और सहयोग मिलता रहा हैं, उसके लिए मैं और हमारी संस्था उनकी अत्यन्त आभारी हैं । डॉ. भायाणी ने इस पुस्तक के विषय में जो अभिप्राय लिखा है उसका भी हम आभार मानते हैं ।
इस संस्था के उत्साही प्रमुख श्री बी. एम. बालर भी धन्यवाद के पात्र हैं जो संस्था के ऐसे कार्यों में हृदयपूर्वक सहयोग देते रहते हैं ।
विगत वर्षों में श्रेष्टी कस्तूरभाई लालभाई स्मारक निधि ने आर्थिक सहायता देकर हमारी संस्था को जो प्रोत्साहन दिया है उसका भी हम आभार मानते हैं ।
इस संस्था में कार्य करने वाली कु. शोभना आर शाह भी उसके सहयोग के लिए हमारे धन्यवाद की पात्र है ।
इस ग्रंथ के मुद्रण के लिए श्री पिताम्बरभाई जे. मिश्रा, गायत्री लेबर प्रिन्टर्स और मुद्रणालय के कार्यकर्ताओं का भी हम आभार मानते हैं ।
अहमदाबाद
Jain Education International
के. आर. चन्द्र
मानद मंत्री
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