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परम्परागत
पृष्ठ
११
??
१३
१५
३१
प्राकृत व्याकरण की समीक्षा आर अधमागधी
पंक्ति
१८
७
२१
११
१०
१४
२०
३५
३६
४२
४३
६१
७२
७७
७८ २
८६
१८
९७ १९
४
२२
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२३
११२ १९
११९ १०
शुद्धि-पत्रक
अशुद्ध
स्वीकार्थ
एसे
हो
आचराङ्ग
[ टिप्पण नं. ४ में जोड़िये ] जिसका शीर्षक बदल गया है ।
आगे पृ. ४५ और
की
सम्पादम
परमेष्ठि
मल
धली
अवन्नवश्वले
(8 4.285)
और यह
पु. नपुं.
एण
ओपपातिकसूत्र
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शुद्ध
स्वीकार्य
ऐसे
ही
आचाराङ्ग
अध्याय नं. १५
निकाल दीजिए
कि
सम्पादन
परमेष्ठी
मेल
- घौली
१.५१*
आवन्नवश्वले
(8.4 285)
और उपरोक्त यह
नपुं.
एणं
औपपातिकसूत्र
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