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१. भरतमुनि और प्राकृत भाषा की उत्पत्ति
प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के बारे में दो मत हैं, एक के अनुसार प्राकृत संस्कृत से जन्मी और दूसरे के अनुसार संस्कृत प्राकृत से जन्मी । इसी के बारे में यहाँ थोड़ी सी चर्चा की जा रही है।
वररुचि अपने प्राकृत व्याकरण में प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के बारे में मौन हैं। चण्ड अपने प्राकृतलक्षणम् में कहते हैं-प्राकृत तीन प्रकार से सिद्ध-प्रसिद्ध है
(१) संस्कृत योनिवाली अर्थात् तद्भव शब्द, (२) संस्कृतसमम अर्थात् तत्सम शब्द और (३) देशीप्रसिद्धम् अर्थात् देश्य शब्द । इन तीन प्रकार के शब्दों से युक्त प्राकृत भाषा बतायो गयी है । उन्होंने इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ नहीं कहा है ।
पू० आचार्य श्री हेमचन्द्र अपने प्राकृत व्याकरण में प्राकृत के विषय में कहते हैं--- १) तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम, (२)... संस्कृतयोनेरेव तस्य लक्षणम् और (३) न देश्यस्य ( ८.१.१ )
अर्थात् ... (अ) देश्य के बारे में इधर कुछ नहीं कहा जा रहा है (३)। (ब) संस्कृत योनि वाले शब्दों के लक्षण दिये जा रहे हैं (२) । (स) इसमें जो शब्द(संस्कृत से ; बने वे और इसमें (संस्कृत में) से जो आये अर्थात् तद्भव और तत्सम शब्द भी हैं (१) ।
यहाँ तक तो उनकी परिभाषा चण्ड के समान ही लगती है परंतु जब उन्होंने यह कहा कि प्राकृत की प्रकृति संस्कृत है तब क्या समझना ?
प्रकृतिः संस्कृतम् (८.१.१) विद्वानों की एक परम्परा इसका अर्थ यह करती है कि प्रकृति शब्द
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