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________________ अर्धमागधी आगम-ग्रन्थों की प्राचीनता और उनकी रचना का स्थल ६६ ध्वनि-परिवर्तन-रहित 'अकस्मात्' · शब्द का प्रयोग अर्धमागधी के प्राचीन आगमग्रंथ में बच गया है यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है । यह बचा हुआ प्रयोग इस प्रकार है: 'एत्थ हि जाणह अकस्मात्'-आचारांग-1.8.1.200, शुबिंग पृ. 33.14 .... इस विषय में आचारांग के टीकाकार शीलांकाचार्य का कहना है कि यह मागध देश की विशेषता है_____ अकस्मादिति मागधदेशे आगोपालाङ्गनादिना संस्कृतस्यैवोच्चारणादिहापि तथैवोच्चारित इति (आचा. म. जै. वि., पृ. 70, पा. टि. नं 17) । शब्द के अन्त में त् की यथास्थिति इसिभासियाई के एक प्रयोग में भी मिलती है-धित् (228) । इसे शुबिंग महादयने अति प्राचीन रूप माना है (देखिए ग्रंथ के अन्त में दिये गये टिप्पण)। - मृच्छकटिकम् की मागधी भाषा के प्रकरण में भी शब्दान्त में-आत् मिलता है-दूलात् पदिट्ठो सि (अंक 2, पद्य नं 1 से पूर्व)। पिशल महोदय (314) अर्धमागधी में प्रयुक्त 'अकस्मा' को गलत बतलाते हैं जैसे-अकस्माइंड (सूयगडंग, ठाणंग) और अकस्माकं (सूयगडंग) । वे उसके स्थान पर 'अकम्हा' का प्रयोग उचित बतलाते हैं क्योंकि 'अकस्मा' मागधी का रूप हैं। .. . - जब अशोक के पूर्वी प्रदेश के शिलालेखों में भी 'अकस्मा' (धौली पृथक् 1 20,21 और जौगड पृथक् 1.4) का प्रयोग मिलता है तो अपनागधी में उसका प्रयोग गलत नहीं माना जा सकता। यह प्रयोग "अर्धमागधी की प्राचीनता और उसका : स्थल निश्चितः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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