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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के आरबन्द्र
मिलते हैं । अशोक के शिलालेखों में भी 'भू , भो, भव' के प्रयोग 25% और 'हु, हव' के प्रयोग 75% मिलते हैं ।
अन्य प्राचीन साहित्य और अभिलेखों की अपेक्षा आचारांग में 'भू' धातु के 'भव' वाले प्राचीन प्रयोग अधिक मात्रा में मिलते हैं। इस प्रमाण के आधार-स्वरूप प्रस्तुत ग्रंथ की प्राचीनता का अंदाज लगाया जा सकता है । (2) ब्र धातु के प्रयोग
ब्र के रूप प्राचीन ग्रन्थों में ही मिलते हैं, परवर्ती साहित्य में इनका प्रयोग नहीं मिलता है। उदाहरण : 1
बेमि, बूया, बूहि, बेंति, बुझ्य, बवीति, बुइत, बुइताओ, बुया. बुयाणा, इत्यादि ।
इसिभासियाई के प्रयोग :
त्ति बेमि और अरहता इसिणा बुइत (हरेक अध्याय में प्रयुक्त)। (3) प्राप् धातु के प्राचीन रूप ( पिशल 504 के अनुसार)
(अ) पप्पोइ, पप्पोति, पप्पुति ( प्राप्नोति ) उत्तरा. (आ) पाउणइ ( * पापुणांति, * पापुणति ) (इ) व्याख्याप्रज्ञप्ति, औपपातिकसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र ।
पाउणति ( इसिभासियाई 33.8, सूत्रकृ. सूत्र, 714),
पाउणंति (सूत्रकृ, सूत्र 517 ) ( ई ) पाउंणिस्सामि ( आचा. सूत्र, 187)
(उ) पप्प (प्राप्य ) आचा. सूत्र, 79, इसिमा अ. 31 1. देविएः आचांराग और सूत्रकृतांग की शन्ट सूचियाँ (म . वि) 2. इस उपविभाग न. (3) और (4) में पिशल के प्राकृत व्याकरण से उदाहरण
दिये गये हैं।
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