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________________ आगम-थोंमें......अर्धमागधी की स्थिति ३३ कप्पइ ण कप्पइ ( सूत्र-27), संपयंति ( सू.-37) एत्थोवरए ( सूत्र-40 ) (-त-का लोप) । पवयमाणा ( सूत्र-12, 13), हिययमब्भे ( सूत्र-15 ) (-द-का लोप ) (२) इसिभासियाइं . ( अ ) संग्रहकर्ता की भाषा अरहता इसिणा बुइतं ( हरेक अध्ययन में ऐसा ही पाठ है ।) इसमें-त-की यथावत् स्थिति है । (ब) उपदेशक की मूल भाषा अध्याय, 38 समाहिए ( समाहितः ), लुब्भई ( लुभ्यते ), जागरओ (जागृतः ) अध्याय, 39 भावओ, कम्मओ, अज्झवसायओ इसिभासियाई के हरेक अध्याय में-त-कार के इस प्रकार के लोप के उदाहरण मिलते हैं । उपसंहार __ भाषा के इस तरह के विश्लेषणात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो रहा है कि अर्धमागधी आगम ग्रंथों के सम्पादकों की पद्धति एक समान नहीं रही है । शब्दों के मध्यवर्ती व्यंजन कभी यथावत् हैं तो कभी घोष कर दिये गये हैं और बहुधा लोप ( महाप्राण का ह कार ) कर दिया गया है। विभक्तियों और प्रत्ययों में कभी प्राचीनता है तो कभी पर AN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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