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आगम-ग्रंथों में ......
. अर्धमागधी की स्थिति
(अ) अर्वाचीन प्रतों में उपलब्ध प्राचीन पाठ अस्वीकृत
पव्वथिए ( इ प्रत )
कूराणि कम्माणि (बी, बी', बी2 प्रत ) इधमेकेसि (खं प्रत)
( च प्रत )
पव्वहिए (म. जै. वि, आचा. 1.1.2.10) कूराइ कम्माइ (शुबिंग, आचा, पृ. 9.8 )
1.2.1.64)
(जै. वि. भा. आचा. 1.2.1.4)
इहमेगेसि (म. जै. वि, आचा.
(ब) मूल में परवर्ती पाठ जब कि वृत्ति में प्राचीन पाठ आचारांग ( आगमोदय संस्करण)
वियहित्ता (सू. 19)
| विजहित्ता (वृत्ति पाठ
पृ. 43 बी.) -- (स) प्रतों में से कभी प्राचीन तो कभी परवर्ती पाठ अपनाये गये हैं :
३१
(1) चुओ (जै. वि. भा. आचा 1.1.1.2 ) चुते ( च प्रत ) (2) नातं (,, 1.1.1.4) णायं (च प्रत )
"9
(द) तत्कालीन लोक - प्रचलित रूप छोड़ दिया गया :
वर्त
कृदन्त-माण
घायमाणे (म. जै. वि. 1.6.4.192)
(जै. वि. भा. 1.6.4.91 ) समणुजाणमाण (जै. वि. भा.
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- मीण ( लोक - प्रचलित ) घायमीणे (शुबिंग पृ. 31.3
समणुजाणमीण (शुब्रिंग,
आचा. पृ. 31.4;33.9)
(ढ) उत्तरवर्ती सम्पादकों द्वारा अपने से पूर्ववर्ती संस्करणों में से प्राचीन शब्द-रूप अस्वीकृत
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