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आगम-ग्रंथों में......अर्धमागधी की स्थिति
(ब) आचारांग की चूर्णि की प्रतों के पाठ
आचा. सूत्र 40
लोय
मत्ता के लिए । मंता लोगं " कूराणि "
कूराई कम्माणि " कम्माई परिवंदण" परियंदण अतिथिबले" अतिधिबले
"
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(९) पालि भाषा के सुत्तनिपात से भी इसी प्रकार के ध्वन्यात्मक
परिवर्तन के पाठान्तर ध्यान में लेने योग्य हैं :पहस्समाणो (50.10) का पहंसमाणो और वीतरस्मि के लिए वीतरंसी (55.4..) पाठान्तर मिलते हैं ।।
स्पष्ट है कि काल के प्रवाह के साथ ग्रंथ की प्राचीन भाषा में किस प्रकार परिवर्तन होते रहे हैं ।
(ग) आचारांग के दो संस्करणों (शुबिंग महोदय और
पू. जंबूविजयजी) की विशेषताएँ शुबिंग' महोदय द्वारा मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों का लोप और महाप्राणों का ह कर दिया गया है अर्थात् व्याकरणकारों के नियमों का अक्षरशः पालन हुआ है। इसके विपरीत पू. जंबूविजयजी
१. आचारांग, लीपजिग, 1910 २. आचारांग, म.जै वि , 1977
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