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________________ विषय सूची अध्याय-१ (क) अघमागधो आगम-ग्रंथों के पाठ बदल जानाः पू. मुनि श्री पुण्यविजयजी का अभिप्राय (ख) प्राचीन भाषा में कालान्तर से आगत परिवर्तनों के कतिपय उदाहरण; जीवित, क्षेत्रश, आत्मन् , मोक्ष आदि शब्द; वैदिक व्यंजन ळ, सुतं मे भगवता आचारांग की हस्तमतों में परवर्ती काल के पाठ आचारांग की चूर्णि और सुत्तनिपात के पाठ (ग) शुकिंग महोदय और श्री जबूविजयजी के आचारांग के संस्करणों की विशेषताएँ 7 (घ) विभिन्न संस्करणों में अलग अलग ध्वनि-परिवर्तन वाले शब्द शौर प्रत्यय 9. आचारांग, सूत्रकृतांग, इसिभासियाइ, उत्तराध्ययन, आचारांग-नियुक्ति, मूलाराधना की टीका (च) एवं (छ) एक ही संस्करण में अलग-अलग शब्द पाठ आचारांग के विभिन्न संस्करण-शुकिंग, आगमोदय, जै. वि. भा., म. जै. वि; इत्थीपरिन्ना (आल्सडफ) एक ही वाक्य में तीन स्तरों के शब्द ओचारांग और आवश्यक सूत्र में समान शब्दों में ध्वनि भेद (ज) शुचिंग महोदय द्वारा ही सपादित आचारांग और इसिभासियाई के शब्द-पाठों में अन्तर अलग अलग सम्पादकों की अलग अलग पद्धति (ट) शुबिंग के आचारांग और इसिभासियाई में मध्यवर्ती त के लोप या यथास्थिति के विषय में अत्यधिक अन्तर (ठ) प्रारभिक दन्त्य नकार और ज्ञ के लिए न या ण (ड) प्राचीन शब्द-रूप नहीं अपनाया जाना उत्तराध्ययन, आचारांग, इत्थीपरिन्ना आचारांग के विभिन्न संस्करण, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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