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________________ डा० सागरमल जैन आचार्यभाषित और महावीरभाषित ही इसकी प्रमुख विषयवस्तु रही होगी । ऋषिभाषितमें 'वागरण' ग्रन्थका एवं उसकी विषयवस्तुकी ऋषिभाषित से समानता का उल्लेख है ।" इससे प्राचीनकाल (इ०पू० ४ थी या ३ री शताब्दी) में उसके अस्तित्व की सूचना तो मिलती ही है साथ ही प्रश्नव्याकरण और ऋषिभाषित का सम्बन्ध भी स्पष्ट होता हैं । स्थानांगसूत्र में प्रश्नव्याकरण का वर्गीकरण दस दशाओं में किया हैसम्भवतः जब प्रश्नव्याकरण के इस प्राचीन संस्करण की रचना हुई होगी तब ग्यारह अंगों अथवा द्वादश गणिपिटिक की अवधारणा भी स्पष्ट रूप से नहीं बन पायी थी । अंग-आगम साहित्य के ५ ग्रन्थ - उपासकदशा, अन्तकृत दशा, प्रश्नव्याकरणदशा और अनुतरौपपातिकदशा तथा कर्मविपाकदशा (विपाकदशा) दस दशाओं में ही परिगणित किये जाते थे । आज इन दशाओं में उपर्युक्त पांच तथा आचारदशा, जो आज दशाश्रुतस्कन्ध के नाम से जानी जाती है, को छोडकर शेष चार- बन्धदशा, द्विगृद्धिदशा, दीर्घदशा और संक्षेपदशा - अनुपलब्ध है । उपलब्ध छह दशाओं में भी उपासकदशा और आयारदशा की विषयवस्तु स्थानांग में उपलब्ध विवरण के अनुरूप है । कर्मविपाक और अनुत्तरौपपातिकदशा की विषयवस्तु में कुछ समानता है और कुछ भिन्नता है । जबकि प्रश्नव्याकरणदशा और अन्तकृतदशा की विषयवस्तु पूरी तरह बदल गई है । स्थानांग में प्रश्नव्याकरण की जो विषयवस्तु सूचित की गई है वही इसका प्राचीनतम संस्करण लगता है, क्योंकि यहां तक इसकी विषयवस्तु में नैमित्तिक विद्याओं का अधिक प्रवेश नहीं देखा जाता है । स्थानांग प्रश्नव्याकरण के जिन दश अध्ययनों का निर्देश करता है, उनमें भी मेरी दृष्टि में इसिमासियाई, आयरियभासियाई और महावीर भासियाई - ये तीन प्राचीन प्रतीत होते हैं' । 'उबमा' और 'सखा' की सामग्री कया थी ? कहा नहीं जा सकता । यद्यपि मेरी दृष्टि में 'उवमा' में कुछ रूपकों के द्वारा धर्म-बोध कराया गया होगा । जैसाकि ज्ञाताधर्म कथा में कर्म Jain Education International 73 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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