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प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज
(द) तत्त्वार्थवार्तिक - तत्वार्थवार्तिक में प्रश्नव्याकरण की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय के आश्रय से प्रश्नों के व्याकरण को प्रश्नव्याकरण कहते है । इसमें लौकिक और वैदिक अर्थो का निर्णय किया जाता है । ..
(इ) धवला- धवला में प्रश्नव्याकरण की जो विषयवस्तु बताई गई है वह तत्त्वार्थवार्तिक में प्रतिपादित विषय-वस्तु से किंचित् विभन्नता रखती है । उसमें कहा गया है कि प्रश्नव्याकरण में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी इन चार प्रकार की कथाओं का वर्णन है। उसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि आक्षेपणी कथा परसमयों (अन्य मतों) का निराकरण कर ६ द्रव्यों और नव तत्त्वों का प्रतिपादन करती है । विक्षेपणी कथा में परसमय के द्वारा स्वसमय पर लगाये गये आक्षेपों का निराकरण कर स्वसमय की स्थापना करती है | संवेदनी कथा पुण्यफल की कथा है । इसमें तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती आदि की ऋद्धि का विवरण है । निर्वे दनी कथा पाप फल की कथा है, इसमें नरक, तिर्यच, जरा-मरण, रोग आदि सांसारिक दुःखों का वर्णन किया जाता है । उसमें यह भी कहा गया है कि प्रश्नव्याकरण प्रश्नों के अनुसार हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्चा का निरूपण करता है।
इस प्रकार प्रश्नव्याकरण की विषय वस्तु के सम्बन्ध में प्रानीन उल्लेखों में एकरूपता नहीं है।
प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु सम्बन्धी विवरणों की समीक्षा
मेरी, दृष्टि में प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु के तीन संस्कार हुए होंगे। प्रथम एवं प्राचीनतम संस्कार, जो ‘वागरण' कहा जाता था, में ऋषिभाषित,
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