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________________ 31 पू. युवाचार्य महाप्रज्ञ __इसका निष्कर्ष यह है कि हमारे समूचे शरीर में चैतन्य-केन्द्र अवस्थित हैं । साधना के तारतम्य के अनुसार जो चैतन्य केन्द्र जागृत होता है, उसी में से अतीन्द्रियज्ञान की रश्मियाँ बाहर निकलने लग जाती हैं। पूरे शरीर को जागृत कर लिया जाता है तो पूरे शरीर में से अतीन्द्रिय ज्ञान की रश्मियाँ फूट पड़ती हैं । किसी एक या अनेक चैतन्य केन्द्रों की सक्रियता से होनेवाले अवधिज्ञान का नाम देशावधि है। पूरे शरीर की सक्रियता से होने वाला अवधिज्ञान सर्वावधि है। नन्दी सूत्र में अवधिज्ञान के छह प्रकार बतलाए गए हैं१. आनुगामिक, २. अनानुगामिक, ३. वर्धमान, ४. हीयमान, ५. प्रतिपाति और ६. अप्रतिपाति षट्खंडागम में अवधिज्ञान के तेरह प्रकार बतलाए गए हैं - १. देशावधि २. परमावधि ३. सर्वावधि ४. हायमान ५. वर्धमान ६. अवस्थित ७. अनवस्थित ८. अनुगामी ९. अननुगामी १०. सप्रतिपाती ११. अप्रतिपाती १२. एक क्षेत्र और १३. अनेक क्षेत्र प्रस्तुत प्रसंग में एक क्षेत्र और अनेक क्षेत्र-ये दो भेद बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। जिसमें जीव-शरीर का एक देश ( चैतन्य-केन्द्र) करण बनता है, वह एकक्षेत्र अवधिज्ञान है, जो प्रतिनियत क्षेत्र के माध्यम से नहीं होता, किन्तु शरीर के सभी अवयवों के माध्यम से होता है - शरीर के सभी अवयव करण बन जाते हैं, वह अनेकक्षेत्र अवधिज्ञान है । २० . यद्यपि अवधिज्ञान की क्षमता सभी आत्म-प्रदेशों में प्रकट होती है, फिर भी शरीर का जो देश करण बनता है उसी के माध्यम से अवधिज्ञान प्रकट होता है । शरीर का जो भाग करण रूप में परिणत हो जाता है, वही अवधिज्ञान के प्रकट होने का माध्यम बन सकता है। नंदीसूत्रं में भी सब अवयवों से जानने और किसी एक अवयव से जानने की चर्चा मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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