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________________ आनारांग में साधना के सूत्र परमदर्शन', आतंक दर्शन, सम्यक्त्व दर्शन, नैष्कर्म्य दर्शन और अनन्यदर्शन - ये सब साधना के महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । ये सब प्रेक्षा के प्रयोग हैं। इनकी अभ्यासपद्धति छुट गई, इसलिए ये मात्र वर्णनात्मक या तथ्यात्मक रह गए । 'विसुद्धिमग्ग' और विज्ञान भैरव' के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो इनका मर्म पकड़ में आ सकता है | ध्यान-पद्धति की विस्मृति के कारण अर्थ की विस्मृति भी हो गई । उसका उदाहरण है-'तिविज्ज' शब्द । चूर्णि कार ने 'तम्हा तिविज्जो' इस पाठकी व्याख्या 'विद्वन्' और 'अतिविद्वन्' इन दो रूपों में की हैं । टीकाकार ने इसकी व्याख्या अतिविद्य और अतिविद्वान् इन दो रूपों में की है ।' बौद्ध परम्परा के अनुसार 'तिविज्ज' पद के द्वारा तीन विद्याओंका ग्रहण किया गया है (१) पूर्व जन्मोंको जानने का ज्ञान । (२) मृत्यु तथा जन्म को जानने का ज्ञान । (३) चित्तमलों के रूप को जानने का ज्ञान । इस प्रकार अनेक प्रकरण हैं, जहाँ अर्थ और तात्पर्य की विस्मृति हुई है। उनका अनुसन्धान करना बहुत आवश्यक है । इससे साधना के नए आयाम खुलेंगे और आगम साहित्य अधिक उपयोगी तथा जीवनविकास में अधिक सहयोगी बन सकेगा। १. आयारो ३। ३८ २. आयागे । ३३ ३. आयाने ३। २८ ४. आयारो ३। ३५. ५. आयारो २। १७३ ६. आचारांग चूणि, पृ. १११ "विज्ज त्ति हे विद्वन् । अहवा अतिविज्ज ! " ___आ० चू०, पृ० ११३ - " तम्हा वेरउवरमा विद्वन्" आचारांगवृत्ति, पत्र १४४ " तस्माद् जातिवृद्धिसुखदुःखदर्शनादतीव विद्यातत्त्वपरिच्छेत्त्री यस्यासावतिविद्यः सः 'परम' मोक्ष ज्ञानादिकं वा तन्मार्ग ज्ञात्वा सम्यक्त्वदर्शी सन् पाप न करोति"। आचारांगवृत्ति, पत्र १४५-'तस्माद् अतिविद्वान्' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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