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________________ जैन आगम साहित्य में कथाओं के प्रकार ___डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, बम्बई कहानी की विद्या बहुत प्राचीन काल से प्रचलित है। जब आदिमानव अपने खान-पान की खोज में इधर- उधर घूमता-फिरता था तो उसने अपने जीवन संवर्ष से राहत पाने के लिए, अपने मन--बहलाव के लिए कहानी को ढूंढ़ निकाला । वह अपनी इच्छा-अनिच्छा, अभिलाषा-आकांक्षा, सुख-दुख और भय-आशंका आदि को पशु-पक्षी, पेड-पौधे, नदी-नद, पृथ्वी-आकाश, भूत-प्रेत और जादू-टोने के माध्यम से व्यक्त करने लगा। कहानी मानव-जीवन के विकास के लिए आवश्यक है । कोई अच्छी कहानी सुनकर मन प्रफुल्लित होता है, हृदय में अद्भुत रस का संचार होता है, मन की ग्रंथियां खुल जाती हैं, रुके हुए भावावेशों का विरेचन हो जाता है और हम स्वास्थ्य-लाभ का अनुभव करने लगते हैं । वेताल पंचविंशति (कहानी १५, पृ० २२२ ) के संग्रहकर्ताने लिखा है-" यहां संग्रहीत कहानियों के एक अंश के कथन अथवा श्रवण से इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है; कहानी का श्रोता और वक्ता दोनों ही पाप से मुक्त हो जाते हैं तथा अनिष्ट देवी-देवताओं की बाधा उन्हें कष्टकर नहीं होती। कहानी सुनने से रास्ते चलते हुए यात्रियों का रास्ता आसानी से कट जाता है, थकान का अनुभव उन्हें नहीं होता । संघदास गणिवाचक के वसुदेवहिडि में उल्लेख है कि जब वसुदेव और अंशुमंत रास्ता चलते-चलते थक गये तो वसुदेव ने अपने सहयात्री को अपने कंधे पर बैठाकर चलने का प्रस्ताव किया । कुमार अंशुमंत ने उत्तर दिया – “ आर्यपुत्र ! इस प्रकार किसी को कंधे पर बैठाकर चलने से थकान दूर नहीं होती। आइये, हम एक-दूसरे को मनोरंजक कहानियां सुनाना शुरु करें।' कहानी अपने आपमें सरल और बोधगम्य होती है जिसमें जीवन की वास्तविकता का लेखा-जोखा रहता है। मानव को जीवन में किन-किन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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