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________________ आचारांग में साधना के सूत्र मानसिक एकाग्रता के लिए विचय ध्यान एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । प्रस्तुत आगम में विचय ध्यान के अनेक सूत्र हैं । जैन दर्शन में आत्मा और पुनर्जन्म का सिद्धान्त स्वीकृत है । पूर्व जन्म की स्मृति के लिए इस विचय ध्यान का प्रयोग किया जाता था ० मैं किस दिशा से आया हूँ? ० क्या पूर्व से आया हूँ या पश्चिम से ? ० उत्तर से आया हूँ या दक्षिण से ? ० ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ या अधोदिशा से ? ० मैं कौन हूँ? ० मैं कौन था ? ० मैं क्या होऊंगा? इन प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न को लेकर साधक ध्यान में बैठ जाता और मन को उसी समस्या में केन्द्रित कर देता । इस साधना से उसे पूर्व-जन्म की स्मृति हो जाती । लोक-दर्शन भी विचय ध्यान का एक प्रयोग है । प्रस्तुत आगम में काम-वासना के विजय का केवल उपदेश ही नहीं है, उसके साधनात्मक उपाय भी निर्दिष्ट हैं । काम-वासना के विजय का एक प्रयोग है-- शरीर-दर्शन । शरीर के तीन भाग हैं (१) अधोभाग – नाभि से नोचे । (२) ऊर्श्वभाग - नाभि से ऊपर । (३) तिर्यग्भाग ---- नाभिस्थान । प्रकारान्तर से उनके तीन भाग ये हैं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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