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________________ आगम-साहित्य में कृष्ण कथा २२१ पराक्रमी कृष्ण कृष्ण की शारीरिक क्षमता अद्भुत थी, वे (विश्वसेन/विष्वक्सेन अर्थात् कृष्ण ) योद्धाओं में श्रेष्ठ थे। उन्होंने अवरकंका में नरसिंह रूप भी धारण किया था ।१२ इसी प्रकार अप्रसन्न होकर कृष्ण ने पांच पाण्डवों को देश से निर्वासित कर दिया था, जिससे पाण्डवों ने पाण्डुमथुरा बसाई थी।५ . दयालु कृष्ण कृष्ण केवल अपने पराक्रम के लिये ही प्रसिद्ध नहीं है, अपितु वे करुणा की प्रतिमूर्ति भी हैं। एक बार कृष्ण अपने परिजनों के साथ भगवान् अरिष्टनेमि के दर्शन के लिये जा रहे थे, रास्ते में उन्हें एक ऐसा वृद्ध दिखलाई दिया, जो बाहर पड़ी ईटों में से एक-एक ईट अन्दर रख रहा था। यह देखकर कृष्ण को उस वृद्ध पर दया आ गई और उन्होंने एक ईट उठाकर बाहर से ले जाकर अन्दर रख दी । यह देख समस्त परिजनों ने भी एक-एक ईट उठाकर बाहर से अन्दर रख दी, जिससे सभी ईटें शीध्र ही अन्दर पहुँच गई। इस कथानक से श्रीकृष्ण की दयालुता का परिचय मिलता है । आज्ञाकारी पुत्र के रूप में कृष्ण कृष्ण के छोटे भाई सुकुमाल के सम्बन्ध में बतलाया गया है कि एक बार सुलसा के पुत्रों ( वस्तुतः स्वयं के पुत्रों ) को देखकर कृष्ण की माता देवकी के मन में विचार आया कि मेरे एक पुत्र हो तो मैं भी उसका बचपना देखू । जब कृष्ण माता देवकी को प्रणाम करने आये तो देवकी ने अपनी मनोगत भावना से कृष्ण को अवगत कराया । पुनः कृष्ण ने पोषधशाला में तीन उपवास कर हरिणेगमेसी देव को प्रसन्न किया और उससे एक छोटे भाई के होने का वरदान मांगा । तत्पश्चात् देवकी को पुत्र लाभ हुआ । यही पुत्र आगे चलकर दीक्षित हुआ जो गजसुकुमाल के नाम से प्रसिद्ध होकर अन्त में मुक्ति को प्राप्त हुआ। यहां कृष्ण का व्यक्तित्व एक आज्ञाकारी पुत्र के रूप में सामने आता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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