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________________ डा० बशिष्ठ. नारायण सिन्हा, वाराणस. में जीव को बाह्य जगत का बोध होता है । स्वप्न अवस्था में सूक्ष्म वस्तुओं का ज्ञान होता है । सुषुप्ति आनन्दमय स्थिति हैं। तुरीय अवस्था आत्मा की पूर्णावस्था है जो पहले की तीन अवस्थाओं का आधार है । भगवतीसूत्र में जीत्र की दो स्थितियों को बताते हुये सुषुप्ति तथा जाग्रत की चर्चा हुयी है किन्तु यह पर जैनागम और उपनिषद् के द्वारा प्रतिपादित विकासकामों में अन्तर जान पड़ता है । नारकी को हमेशा सोने की स्थिति में बताकर जाग्रत से सुषुप्ति को कन विकसित बताया गया है लेकिन उपनिषद् के अनुसार जाग्रत से सुषुप्ति की अवस्था अधिक विकसित है क्योंकि वह आनन्दमय है | किन्तु समानता तो दोनों में है ही कि चेतना की स्थिति परिवर्तनशील है ।। जैन दर्शनानुसार एक, दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रिय वाले जीव हते हैं, जिनमें चेतना का क्रमिक विकास देखा जाता है । पाँच इन्द्रिय वाले जीव में भी समनस्क अमनस्क से अधिक विकसित होता है क्योंकि उसके पास मन होता है । सबसे अधिक विकसित मुक्त जीव होते हैं। इस तरह विकास क्रम में एक इन्द्रिय वाला जीव सबसे कम तथा मुक्त जीव सबसे अधिक विकसित देखा जाता है । उपनिषद् में कोशों के विवेचन मिलते हैं जिनमें भौतिक तत्त्व से लेकर आनन्दमय विशुद्ध आत्मा का विकास दिखाया गया है। कोश पाँच हैं : अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश तथा आनन्दम्य कोश। इनमें अन्नमय कोश तो अजीव तत्त्व हैं किन्तु पाणमय कोश में वनस्पति आदि एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पशुपक्षी तक आ जाते हैं । मनोमय कोश में प्रधान तौर से मनुष्य और कुछ पाँच इन्द्रिय वाले पशु भी आते हैं किन्तु इससे विकसित विज्ञानमय कोश होता है जिसमें सिर्फ मनुष्य आते हैं क्योंकि यह चेतन मान वेतन ली नहीं रहता है बल्कि स्वचेतन हो जाता है ! यहाँ पर मनुष्य पशु से बिल्कुल अलग हो जाता है । सबये विकसित आनन्दमय को होता है । यह मुक्तावस्था है जहाँ सनी भेद समान हो जाते है। जैन मतानुसार भी जीव अपनी मुक्तावस्था में ज्ञान की विभिन्न सीमाओं को पार करके कैवल्य की स्थिति में होता हैं । वह अपने पराये के भेद को मिटा देता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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