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उत्तराध्ययनसूत्र तथा धम्मपद की उक्तियों में प्राप्त साम्य
-प्रज्ञा ठाकर, अहमदाबाद.
अति प्राचीन काल से राष्ट्रीय जीवनमूल्यों का बोध प्राप्त कराने के लिए सरल बोधात्मक कथानकों व सुभाषितों का प्रयोग होता रहा है । एक ही प्रकार के एसे सुभाषितात्मक अंश प्रायः सभी संप्रदायों के साहित्य में उपलब्ध हैं और इन सूक्तियों का त्रिकालाबाधित मूल्य है । जैनागमों में उत्तराध्ययनसूत्र तथा बौद्ध आगमों में धम्मपद प्रायः इसी कारण अधिक लोकप्रिय है । आगम का सर्वसाधारण अर्थ है-ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ, प्राप्त ज्ञान का मूल स्रोत कौन सा है यह प्रगट करनेवाली गुरु-शिष्य परंपरा । अर्थात् मोक्षप्राप्ति के विभिन्न मार्ग जतानेवाले अनेकानेक संप्रदायों में भी सद्विचार की समानता का सूत्र हमेशा दृष्टिगोचर होता रहा है।
उत्तराध्ययनसूत्र [उ.सू.] जैन आगम साहित्य के प्राचीनतम लोकप्रिय ग्रंथों में से एक है।
उ.सू. के रचनाकार तथा रचना काल के बारे में सर्वसंमत अभिप्राय नहीं है । किन्तु उ.सू. भगवान महावीर के निर्वाण के प्रायः १००० वर्ष के सुदीर्घ कालखण्ड में भिन्न भिन्न व्यक्तियों द्वारा संकलित ग्रंथ है । किसी एक व्यक्ति द्वारा लिखित किसी काल विशेष का यह ग्रन्थ नहीं है। इस मत से अधिकांश विद्वान सहमत है । उनका प्राचीनतम अंश श्रमणों को सम्बोधित उपदेशवचनों, दृष्टांत कथाओ, इतिहास संवादों और प्राचीन आख्यायिकाओं से सम्बन्धित अध्-ययन है । बाद के कुछ अध्ययनों को छोड़ कर अन्य सभी भाषा, छंदरचना, तथा विषयनिरूपण की दृष्टि से आगम साहित्य के प्राचीनतम स्तर में स्थान :प्राप्त करते हैं।
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