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________________ भगवती आराधना एवं प्रकीर्णकोंमें आराधनाका स्वरूप -जिनेन्द्रकुमार जैन, उदयपुर आराधना विषयक ग्रन्थ अर्धमागधी आगम साहित्य के प्रकीर्णकों एवं शौरसेनी जैन आगम साहित्य में शिवार्यकृत ' भगवती आराधना ' का प्रतिपाद्य विषय लगभग समान है । इन दोनों में आराधना एवं संलेखना का विस्तृत वर्णन किया गया है । इन ग्रन्थों की अनेक गाथाएं भी एक दूसरे में समान पायी जाती हैं। इन दोनों के आधार पर यहाँ आराधना के स्वरुप का विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास किय गया है। भगवती आराधना का मूल नाम ' आराधना' है किन्तु कर्ता ने अपन कृति को परमआदरभाव व्यक्त करने के लिए आराधना से पहले ' भगवती विशेषण लगाया है। इस ग्रन्थ के टीकाकार श्री अपराजित सूरि ( १० वीं शताब्दी )ने भी टीका के अन्त में इसका नाम ' आराधना ' दिया है। इसी प्रकार देवसेन ने भी भगवती आराधना के आधार पर एक ग्रन्थ की रचना की थी जिसका नाम उन्होंने 'आराधनासार ' दिया है। आचार्य अमितगति ने भी संस्कृत पद्यों में एक ग्रन्थ लिखा जिसका नाम उन्होंने भी 'आराधना' ही दिया है। भगवती आराधना के सम्पादकों एवं अन्य विद्वानों ने इस ग्रन्थ के नामकरण, रचनाकाल आदि पर विशेष प्रकाश डाला है। भगवती आराधना : आचार्य शिवार्यकृत भगवती आराधना के नाम से ही स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्रस्तुत नन्थ में आराधना के भेद-प्रभेद व स्वरूप आदि का वर्णन किया गया है । आचार्य कुन्दकुन्द के बाद संभवतः ईसा की दूसरी शताब्दी में रचित इस ग्रन्थ में कुल २१.६४ गाथाएं हैं-जिन में सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र व 10. Seminar on Jain Agama Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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