SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डा० सागरमल जैन में सुरक्षित है । ऋषिभाषित के तेत्तलिपुत्र नामक अध्याय की विषय सामग्री ज्ञाताधर्मकथा के १४ वें तेत्तलिपुत्र नामक अध्याय में आज भी उपलब्ध है। उत्तराध्ययन के अनेक अध्याय प्रश्नव्याकरण के अंश थे उसकी पुष्टि अनेक आधारों से की जा सकती है । सर्वप्रथम उत्तराध्ययध नाम ही इस तथय को सूचित करता है कि यह किसी ग्रन्थ के उत्तर-अध्ययनों से बना हुआ ग्रन्थ है। इसका तात्पर्य है कि इसकी विषय-सामग्री पूर्व में किसी ग्रन्थ का उत्तरवर्ती अंश रही होगी। इस तथय को पुष्टि का दूसरा किन्तु सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण यह है कि उत्तराध्ययन नियुक्त गाथा ४ में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि उत्तराध्ययन का कुछ भाग अंग साहित्य से लिया है । उत्तराध्ययन-नियुक्ति की इस गाथा का तात्पर्य यह है कि बन्धन और मुक्ति से सम्बन्धित जिनभाषित और प्रत्येक बुद्ध सम्वादरूप इसके कुछ अध्ययन अंग ग्रन्थो से लिये गये हैं। नियुक्तिकार का यह कथन तीन मुख्य बातों पर प्रकाश डालता है। प्रथम तो यह कि उत्तराध्ययन के जो ३६ अध्ययन हैं, उनमें कुछ जिनभाषित (महावीरभाषित) और कुछ प्रत्येकबुद्धों के सम्वाद रूप है तथा अंग साहित्य से लिये गये हैं । अब यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि वह अंग-प्रन्थ कौनसा था, जिससे उत्तराध्ययन के ये भाग लिये गये ? कुछ आचार्यों ने दृष्टिवाद से इसके परिषह आदि अध्यायों को लिये जाने की कल्पना की हैं किन्तु मेरी दृष्टि में इसका कोई आधार नहीं है । इसकी सामग्री उसी ग्रन्थ से ली जा सकती है जिसमें महाबीरभाषित और प्रत्येकबुद्धभाषित विषयवस्तु हो। इस प्रकार विषयवस्तु प्रश्नव्याकरण की ही थी अतः उससे ही इन्हें लिया गया होगा । यह बात निर्विवाद रूप से स्वीकार की जा सकती है कि चाहे उत्तराध्ययन के समस्त अध्ययन तो नहीं, किन्तु कुछ अध्ययन तो अवश्य ही महावीरभाषित हैं । एक बार हम उत्तराध्ययन के ३६ वें अध्ययन एवं उसके अन्त में दी हुई उस गाथा को जिसमें उसका महावीरभाषित होना स्वीकार किया गया है, परवर्ती एवं प्रक्षिप्त मान भी लें, किन्तु उसके १८वे 6. Seminar on Jain Agama Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy