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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज सामग्री जोड़ी जाती रही अथवा किसी ग्रन्थ कि सामग्री को निकालकर उससे एक नया ग्रन्थ बना दिया । उदाहरण के रूप में किसी समय निशीथ को आचारांग की चूला के रूप में जोड़ा गया और कालान्तर में उसे वहाँ से अलग कर निशीथ नामक नया ग्रन्थ ही बना दिया गया । इसी प्रकार आयारदशा ( दशाश्रुतस्कन्ध) के आठवें अध्याय (पर्युषण कल्प) की सामग्री से कल्पसूत्र नामक एक नया ग्रन्थ ही बना दिया गया । अतः यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि पहले प्रश्नव्याकरण में इसिमासियाई के अध्याय जुड़ते रहे हों और फिर अध्ययनों की सामग्री को वहां से अलग कर इसिमासियाई नामक स्वतन्त्र ग्रन्थ अस्तित्व में आया है । मेरा यह कथन निराधार भी नहीं है । प्रथम तो दोनों नामों की साम्यता तो है ही । साथ ही समवायांग में यह भी स्पष्ट उल्लेख हैं कि प्रश्नव्याकरण में स्वसमय और परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के कथन हैं । (पहा वागरणदसाइण ससमय - परसमय पण्णत्रय पचेअबुद्ध . भासियाइणं, समवायांग ५४७) । इसिमासियाई के सम्बन्ध में यह स्पष्ट मान्यता है कि उसमें प्रत्येकबुद्धों के वचन है । मात्र यही नहीं समवायांग 'सं-समय पर समय पण्णवयं पत्ते अबुद्ध-अर्थात् स्वसमय एवं परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धका उल्लेख कर इसकी पुष्टि भी कर देता है कि वे प्रत्येकबुद्ध मात्र जैन परंपरा के नहीं है अपितु अन्य परम्पराओं के भी है । इसिमासियाई में मंखलिगोसाल, देवनारद, असितदेवल, याज्ञवल्क्य, उदालक आदि से सम्बन्धित अध्याय भी इसी तथ्य को सूचित करते हैं । मेरी दृष्टि में प्रभव्याकरण का प्राचीनतम अधिकांश भाग आज भी इसिमासियाई में तथा कुछ भाग सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथा और उत्तराध्ययन के कुछ अध्यायों के रूप में सुरक्षित हैं । प्रश्नव्याकरण का इसिमासियाई वाला अंश वर्तमान' 'इसिभासियाई ( ऋषिभाषित ) में ' 'महावीरभाषियाई में तथा आयरियाभासियाई का कुछ अंश उत्तराध्ययन के अध्ययनों 80 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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