________________
बीअं कुरु-कंडं
चउद्दहमो संधि हर-विसम णयण पजलिय-जलण-जालोलि-ल्हिक्कमाणस्स । सामलि-थणेसु दीसइ पय-मग्गो मयण-तुरयस्स ॥१॥ जे समुहागय-वाला-विवलिय-पय-वियसियच्छि-विच्छोहा । अम्हहं ते मयण-सरा जणस्स जे होंति ते होंतु ॥२॥ ता थियसु मुहुत्तं सुंदरंग भणियं कुरंग-णयणीए । जा तुह पडिमा-पडिछेदएण मयरद्धयं लिहमि ॥३॥ भय-गरुय-लोह(१य)-लज्जा-विवज्जियं एक्क-मुत्ति-संभूयं खवणत्तणं च पेम्म ण होइ जं तेण किं कज्जं ॥४॥ (गाथा-समूह)
पुच्छिउ गउतमु सेणिएण अखिउ जायव-कंडु पई
कुसुमाउह-सर-पसर-णिवारा । कहे एवहिं कुरु-कंडु भडारा ॥१॥ [१]
वम्हहो सुउ वसिङ दिहि-गारउ खत्तिय-तिलउ पुहवि-परमेसर सुय सच्चवइ थत्ति अणुरायहो जइहिं मि कामुक्कोवणगारी सीय जेम परिणिज्जइ रामें वासु सुहद्द अवर पोमावइ णरवइविट्ठिहे पुणु पच्छिल्ली जाउ ताउ पंडुहे पडिवण्णउ
पुरे वंभाणे वंभु पहिलारउ अंति वसिट्ठहो तासु परासरु गिरिय-महाएविहे वसु-रायहो जोयणगंध ताहे लहुयारी तहिं सच्चवइ परासर-णामें एक्कु पुत्तु दो दुहियउ पावइ अंधकविट्ठिहे दिण्ण पहिल्ली पुत्त सुहदहे दह दो कण्णउ
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org