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________________ 45 विस्तार से विवेचन किया है । सन्धिबद्ध काव्यों में स्वयंभू ने छन्दों के प्रयोग के सम्बन्ध में कहा है कि संधि के आरंभ में घत्ता रहता है, संधि में अनेक कडवक होते हैं । asas के अन्त में घत्ता रहती हैं । कडव में आठ यमक रहते हैं । कडवक में पडिया छन्द का प्रयोग प्रायः होता हैं । कभी कभी कडवक के आरंभ में द्विपदी ( दुबई ) छन्द रहता हैं ! घत्ता, द्विपदी तथा कsar में रचित होनेवाले छन्दों के कई प्रकारों का स्वयंभू ने उल्लेख किया है । 'रिवणेमिचरिउ' में प्रत्येक संधि के आरम्भ में घत्ता का प्रयोग हुआ है । तीनों ही प्रतिलिपियों में इसको ध्रुवक की संज्ञा दी गई है । ध्रुवक- घत्ता में संक्षेप में संधि के कथावस्तु का संकेत रहता है । ध्रुवक, लगता हैं, भरत के नाट्यशास्त्र में प्राप्त वागीतों का ही परिवर्तित रूप है । मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में टेक के रूप aar विद्यमान है । प्रत्येक यमक के पश्चात् टेकको संगीतज्ञ दुहराते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक कवक के अन्त में ध्रुवक का स्मरण किया जाता होगा | कडवक के अन्त में घत्ता छन्द का नियमित रूप से प्रयोग किया गया है, किसी किसी संधि में ( संधि १६, १७, ३१) कडवक के आरम्भ में द्विपदी का प्रयोग हुआ है ! स्वयंभू ने कडवक के मध्य में केवल समचतुप्पदी सोलह मात्रा वाले पद्धडिया छन्द का ही विशेष रूप से प्रयोग किया हैं, किन्तु प्रसङ्ग के अनुसार अन्य छन्दों के भी प्रयोग किए हैं यथा - संधि १९.८, २३.४, २६.४, २९.७ इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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