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जहिं पंच वि तहिं धम्मु, जहिं पंच-वि तहिं णारायणु । जहिं पंच-वि तर्हि सुक्खु, पर को-वि ण दुक्खह भाषणु २२.५ 'जहाँ पांच पांडव हैं वहीं धर्म है, जहां पांच हैं वहीं नारायण हैं, जहाँ पांच हैं वहीं सुख है, वहीं कोई दुःख का भाजन नहीं होगा' |
अर्जुन और सुभद्रा के विवाह का भी कवि ने सरस वर्णन किया है । अर्जुन को कृष्ण समझते हैं कि वह उनकी बहन है और अर्जुन की माता कुन्ती की भतीजी थी, किन्तु कृष्ण के हस्तक्षेप से विवाह हो पाता है ।
कवि ने अर्जुन के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाले, उसके शौर्य को उदात्तता प्रदान करने वाले दूसरे प्रसंगों को पल्लवित किया है । वे हैं खाण्डव दहन ( संधि २३), इन्द्र की पर्वत पर गमन ( संधि २५ ), इन्द्रलोक में जाकर अस्त्र और यश प्राप्त करना ( संधि २५), गंधर्वो के साथ युद्ध करके दुर्योधन को छुड़ाना (संधि २६ ), विराट के यहाँ बृहन्नला के रूप में नृत्य सिखाना (संधि २५ ) तथा विराट के गोधन को दुर्योधन की सेना को परास्त करके छुडाना (संधि २९ - ३२) । अर्जुन के चरित्र का जितना सुन्दर विकास कवि ने किया है उतना और चरित्रों का नहीं । पांडवों में युधिष्ठिर को धर्मपरायण, मर्यादा को रक्षा करनेवाले महापुरुष के रूप में चित्रित किया है । वे अपने भाईयों की संकट विपत्ति में रक्षा करते हैं— उनकी देवस्तुति से धर्म का आसन काँपने लगता है :
'थिउ थुइ करंतु ज एम सउ, तहो धम्महो आसण - कंपु जाउ । २७-३
विराट के नगर में प्रवेश करने के पूर्व वे अपने भाइयों को तथा द्रौपदी को आचरण विषयक शिक्षा देते हैं । वे कहते हैं— सेवा धर्म सभी के लिए बहुत कठिन है, उठने बैठने, हासविलास में सावधान रहने की शिक्षा देते हैं
ड्ड चिंत महु, जो जोगि-जणहो वि अगम्मु । किह तुम्हारिसेहिं, सो सेवउ सेवा - घम्भु ॥ २८- १.
'मुझे बड़ी चिंता है - जो योगीजनों के लिए भी अगम्य है वह सेवा धर्म तुम्हारे जैसों से कैसे होगा । "
विराट के यहाँ एक वर्ष अज्ञातवास करके युद्ध में कौरववीरों - भीष्म, द्रोग, कृपाचार्य, कर्ण को पराजित करके अर्जुन दुर्योधन का मुकुट गीरा देता है । पाण्डव
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